पौड़ी, 3 मार्च 2025 को उत्तराखंड में बढ़ती वनाग्नि की घटनाओं को नियंत्रित करने और इससे निपटने के लिए आमुक्त सभागार, पौड़ी में एक दिवसीय तकनीकी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला अपर प्रमुख वन संरक्षक (वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन, उत्तराखंड) के निर्देशन में आयोजित की गई, जिसमें वनाग्नि रिपोर्टिंग, वायरलेस ऑपरेटिंग और मास्टर कंट्रोल रूम प्रबंधन से जुड़े कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया।
विभिन्न वन प्रभागों के कार्मिकों ने लिया भाग
इस कार्यशाला में उत्तराखंड के विभिन्न वन प्रभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया, जिनमें शामिल थे:
- गढ़वाल वन प्रभाग
- सिविल स्वयं पौड़ी
- रुद्रप्रयाग वन प्रभाग
- लैंन्सडाउन वन प्रभाग
- भूमि संरक्षण वन प्रभाग लैंसीडाउन
प्रशिक्षण में प्रमुख विषय
- वनाग्नि के कारण और जनसहभागिता
वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन उत्तराखंड के संजय रोहित ने वनाग्नि के प्रमुख कारणों की जानकारी दी और इसे रोकने के लिए जनसहभागिता पर जोर दिया। उन्होंने चीड़ के जंगलों में सूखी पत्तियों (पिरूल) के संग्रहण को बढ़ावा देने पर बल दिया, जिससे जंगलों में आग लगने की घटनाओं को रोका जा सके।
- जलवायु परिवर्तन और वनाग्नि के प्रभाव
गंगोत्री कौशल विकास एवं उत्थान समिति के अध्यक्ष रमेश खत्री ने वनाग्नि के पर्यावरणीय और सामाजिक कुप्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिन्हें रोकने के लिए स्थानीय समुदायों को जागरूक करना आवश्यक है।
- वायरलेस तकनीक और डिजिटल समाधान
- वायरलेस तकनीक विशेषज्ञ उपेंद्र गोयल ने बताया कि किस तरह वायरलेस संचार प्रणाली का सही उपयोग करके वन विभाग वनाग्नि की घटनाओं की तत्काल सूचना प्रसारित कर सकता है।
- डिजिटल विशेषज्ञ पंकज रतूड़ी ने वनाग्नि मॉनिटरिंग ऐप की जानकारी दी, जिससे वन विभाग को आग की घटनाओं की रिपोर्टिंग और निगरानी में मदद मिलेगी।
- वनाग्नि नियंत्रण के उपाय
सिल्विकल्चर विभाग (FRI देहरादून) के विशेषज्ञ अमित शर्मा ने वनाग्नि नियंत्रण के आधुनिक तरीकों और वन संरक्षण की रणनीतियों पर विस्तार से जानकारी दी।
प्रशासन ने की जनसहयोग की अपील
कार्यशाला में विशेषज्ञों ने स्थानीय लोगों को वनाग्नि रोकथाम में सहयोग करने की अपील की। अधिकारियों ने कहा कि सूखी घास, पिरूल और अन्य ज्वलनशील पदार्थों को हटाने से वनाग्नि की घटनाओं में कमी आ सकती है।
निष्कर्ष
यह कार्यशाला उत्तराखंड में वनाग्नि नियंत्रण को प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई। इसमें तकनीकी समाधान, सामुदायिक भागीदारी और आधुनिक वन प्रबंधन तकनीकों पर जोर दिया गया, जिससे वन विभाग को आग रोकने और आपदा प्रबंधन को प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।