अल्मोड़ा में 6 मार्च 2025 को अपर प्रमुख वन संरक्षक (वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन, उत्तराखंड) के निर्देशन में वनाग्नि सुरक्षा को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में वनाग्नि रिपोर्टिंग, वायरलेस ऑपरेटिंग और मास्टर कंट्रोल रूम प्रबंधन से जुड़े कर्मचारियों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
50 से 60 प्रतिभागियों ने लिया भाग
इस कार्यशाला में अल्मोड़ा, बागेश्वर एवं भूमि संरक्षण रानीखेत वन प्रभागों के वायरलेस ऑपरेटर्स, मास्टर कंट्रोल रूम प्रभारी एवं वनाग्नि रिपोर्टिंग से जुड़े कार्मिकों ने भाग लिया।
वनाग्नि के प्रमुख कारणों पर विशेषज्ञों की राय
कार्यशाला में वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन उत्तराखंड के संजय रोहित ने वनाग्नि के कारणों पर विस्तृत जानकारी दी और जनसहभागिता की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि चीड़ के जंगलों में पिरूल (सूखी पत्तियां) एकत्रित करने की कार्यवाही को अपनाकर आग लगने की घटनाओं को रोका जा सकता है।
वनाग्नि के दुष्प्रभाव और जलवायु परिवर्तन पर विशेष सत्र
गंगोत्री कौशल विकास एवं उत्थान समिति के मास्टर ट्रेनर भोपाल सिंह भंडारी तथा FRI (वन अनुसंधान संस्थान) की पर्यावरण विशेषज्ञ अंकिता चौधरी ने वनाग्नि के कुप्रभावों और जलवायु परिवर्तन पर इसके असर को लेकर जागरूक किया।
वायरलेस तकनीक और ऐप के माध्यम से आग की रोकथाम
कार्यशाला में वायरलेस तकनीकी विशेषज्ञ उपेंद्र गोयल ने वन विभाग की आपातकालीन संचार प्रणाली को मजबूत करने के लिए वायरलेस तकनीकों की जानकारी दी।
वहीं, डिजिटल विशेषज्ञ पंकज रतूड़ी ने वनाग्नि मॉनिटरिंग ऐप की कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से बताया, जिससे रियल-टाइम रिपोर्टिंग के जरिए आग पर तुरंत नियंत्रण पाया जा सकेगा।
वनाग्नि प्रबंधन के लिए आधुनिक रणनीतियां
FRI देहरादून के सिल्विकल्चर विशेषज्ञ अमित शर्मा ने वनाग्नि नियंत्रण एवं प्रबंधन पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि तकनीकी उपाय, सामुदायिक जागरूकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाकर वनाग्नि की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है।
वनाग्नि नियंत्रण के लिए जनसहयोग जरूरी
विशेषज्ञों ने स्थानीय लोगों से वनाग्नि रोकथाम में सहयोग करने की अपील की और कहा कि जागरूकता और सतर्कता के माध्यम से जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सकता है।