विश्व प्रसिद्ध सूरजकुंड मेले का आगाज, 30 से अधिक देश मेले का हिस्सा होंगे

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हरियाणा में  35वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का आगाज हो चुका है। हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय और सीएम मनोहर लाल खट्टर ने मेले का उद्घाटन किया। वर्ष 2021 में कोविड महामारी के कारण बहुप्रतीक्षित शिल्प कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो पाया था। 35वां सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला-2022 लंबे अंतराल के बाद आयोजित किया जा रहा है।

1987 में पहली बार हुआ था आयोजन

सूरजकुंड शिल्प मेला 1987 में पहली बार भारत की हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि और विविधता को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था। केंद्रीय पर्यटन, कपड़ा, संस्कृति, विदेश मंत्रालय और हरियाणा सरकार के सहयोग से सूरजकुंड मेला प्राधिकरण एवं हरियाणा पर्यटन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, यह उत्सव शिल्प, संस्कृति के सौंदर्य और भारत के स्वादिष्ट व्यंजनों से सृजित परिवेश के शानदार प्रदर्शन के मामले में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कैलेंडर पर गौरव और प्रमुखता की श्रेणी पर पहुंच गया है। समय के साथ सामंजस्य बनाते हुए, पेटीएम इनसाइडर जैसे पोर्टलों के माध्यम से ऑनलाइन टिकट उपलब्ध कराए जाते हैं, जिससे आगंतुकों को लंबी कतारों की परेशानी के बिना मेला परिसर में आसानी से प्रवेश करने में मदद मिलती है। मेला स्थल तक आसपास के क्षेत्रों से आने वाले दर्शकों को लाने के लिए विभिन्न स्थानों से विशेष बसों का संचालन किया जाएगा।

19 मार्च से 4 अप्रैल तक चलेगा मेला

मेला ग्राउंड 43.5 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और शिल्पकारों के लिए 1183 वर्क हट्स और एक बहु-व्यंजन फूड कोर्ट है, जो आगंतुकों के बीच बेहद लोकप्रिय है। मेले का परिवेश महुआ, नरगिस, पांचजन्य जैसे रूपांकनों और सजावट के साथ इसे विशिष्ट संस्कृति से जोड़ता है और इसके साथ ही स्वतंत्रता के 75 वर्ष की थीम के साथ स्वतंत्रता पदक, तिरंगे झंडे और स्मारक टिकटों के रूपांकनों और प्रतिकृतियों के साथ इसकी शोभा को बढ़ाता है। ‘सूरजकुंड मेला अब विदेशों में अत्यधिक लोकप्रियता के साथ एक पर्यटक कार्यक्रम भी बन चुका है। मेला 19 मार्च से 4 अप्रैल, 2022 तक प्रतिदिन दोपहर 12.30 बजे से 9.30 बजे तक खुला है।

मेला का ‘थीम स्टेट’ ‘जम्मू और कश्मीर’

इस बार ‘जम्मू और कश्मीर’ 35वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला 2022 का ‘थीम स्टेट’ है, जो राज्य से विभिन्न कला रूपों और हस्तशिल्प के माध्यम से अपनी अनूठी संस्कृति और समृद्ध विरासत को प्रदर्शित कर रहा है। जम्मू-कश्मीर के सैकड़ों कलाकार विभिन्न लोक कलाओं और नृत्यों का प्रदर्शन करेंगे। वैष्णो देवी मंदिर, अमरनाथ मंदिर, कश्मीर से वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करने वाले हाउस बोट का लाइव प्रदर्शन और स्मारक द्वार ‘मुबारक मंडी-जम्मू’ की प्रतिकृतियां इस वर्ष के मेले में मुख्य आकर्षण के रूप में उपस्थित हैं।

30 से अधिक देश मेले का हिस्सा होंगे

सूरजकुंड शिल्प मेले के इतिहास में एक शानदार उपलब्धि स्थापित करते हुए इसे 2013 में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपग्रेड किया गया था। 2020 में, यूरोप, अफ्रीका और एशिया के 30 से अधिक देशों ने मेले में भाग लिया। इस वर्ष 30 से अधिक देश मेले का हिस्सा होंगे, जिसमें भागीदार राष्ट्र- उज्बेकिस्तान शामिल है। लैटिन अमेरिकी देशों, अफगानिस्तान, इथियोपिया, इस्वातिनी, मोजाम्बिक, तंजानिया, जिम्बाब्वे, युगांडा, नामीबिया, सूडान, नाइजीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, सेनेगल, अंगोला, घाना, थाईलैंड, नेपाल, श्रीलंका, ईरान, मालदीव और बहुत से अन्य देश भी पूर्ण उत्साह के साथ भागीदार होंगे।

मनोरंजन के लिए कार्यक्रमों का आयोजन

आगंतुकों के मन को प्रफुल्लित करने के लिए, भारत के राज्यों के कलाकारों सहित भाग लेने वाले विदेशी देशों के अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकारों द्वारा शानदार प्रदर्शनों की प्रस्तुति की जाएगी। पंजाब का भांगड़ा, असम का बिहू, बरसाने की होली, हरियाणा के लोक नृत्य, हिमाचल प्रदेश का जमाकड़ा, महाराष्ट्र की लावणी, हाथ की चक्की का सीधा प्रदर्शन और हमेशा से विख्यात रहे बेहरुपिया जैसी अनेक कलाओं में माहिर कलाकार दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने के साथ-साथ मेला मैदान में अपनी मनमोहक प्रतिभा और प्रदर्शन से दर्शकों का मनोरंजन करेंगे। मेला पखवाड़े के दौरान शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रम में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया जाएगा।

सूरजकुंड का इतिहास

लोकप्रिय सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का आयोजन स्थल सूरजकुंड, दक्षिणी दिल्ली से फरीदाबाद में 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सूरजकुंड का नाम प्राचीन राजभूमि से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘सूर्य का कुंड’, जिसका निर्माण 10वीं शताब्दी में तोमर वंश के शासकों में से एक राजा सूरजपाल ने किया था। ‘सूरज’ का अर्थ ‘सूर्य’ है और ‘कुंड’ का अर्थ ‘कुंड/झील या जलाशय’ है। यह स्थान अरावली पर्वत श्रृंखला की पृष्ठभूमि के सामने निर्मित है।

जैसा कि इतिहासकार बताते हैं, यह क्षेत्र तोमर वंश के अधिकार क्षेत्र में आता था। सूर्य उपासकों के वंश के शासकों में से एक राजा सूरजपाल ने इस क्षेत्र में एक सूर्य कुंड का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है कि इसकी परिधि में एक मंदिर भी स्थापित था। पुरातात्विक उत्खनन से यहां खंडहरों के आधार पर एक सूर्य मंदिर के अस्तित्व का पता चला है जिसे अब भी देखा जा सकता है। फिरोज शाह तुगलक (1351-88) के तुगलक राजवंश शासन के दौरान हाइपरलिंक, चूने के पत्थरों के साथ सीढ़ियों और छतों का पुनर्निर्माण करके जलाशय का नवीनीकरण किया गया था।

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