कोरोना वाइरस के दृष्टिगत लॉक डाउन के बाद खुली शराब की दुनकों के बाहर कई क्षेत्रों में लंबी-लंबी लाइने नजर आने लगी। इन लाईनों की सबसे खास बात यह थी कि कल तक जिस मजदूर वर्ग के पास खाने को कुछ नहीं था। राशन खरीदने के पैसे नहीं थे, वे भी शराब खरीदने की लाईनों में नजर आने लगे हैं। शायद उनके पास जो पैसा है उस पैसे की यही विशेषता है कि उस पैसे से राशन और सब्जियां तो नहीं मिलती, लेकिन वह पैसा शराब जरूर दिला सकती है। कल तक सरकार को इस बात पर कोसने वाले कि उनका काम धाम बंद है, कमाई ढेला भर नहीं है, उनका घर कैसे चलेगा, यह फिक्र सरकार नहीं कर रही, उन तक राशन नहीं पहुंचा रही, पता नहीं अचानक से उन लोगों के पास कहां से धन वर्षा हो गई कि वह लोग भी नगद शराब खरीदने शराब दुकान में पहुंच गए।
केंद्र सरकार के आदेश के बाद उत्तराखंड राज्य सरकार ने भी शराब खरीदी बिक्री को मंजूरी दे दी। इसके बाद सोमवार सुबह 9:00 बजे से शराब दुकानें खुल गई । करीब 40 दिन बाद शराब दुकान गुलजार होने से रौनक वापस लौट आई। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की है कि कल तक जो लोग इस बात का रोना रो रहे थे कि उनके पास फूटी कौड़ी नहीं है, अचानक शराब खरीदने के लिए पता नहीं उनके पास कहां से पैसे आ गए। इसी से एक वर्ग की मंशा समझी जा सकती है, जिनकी सोच यही है कि उनका और उनके परिवार की भूख मिटाने की जिम्मेदारी सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं की है। यानी जाहिर है यह लोग झूठ बोल रहे थे। इनके पास पैसे थे लेकिन यह वर्ग हमदर्दी हासिल करने झूठी कहानी गढ़ रहे थे , जाहिर है अब शराब दुकान खुल जाने से महिलाओं और परिवार के बच्चों का निवाला छीन जाएगा। घर के मर्द घर की पूंजी शराब खरीदने में खर्च करेंगे। 40 दिन तक गांव और घर में जो खुशी थी वह अब एक बार फिर कलह में तब्दील होगी
शराबियों की इस हरकत से 40 दिनों से इन लड़ाई को युद्ध स्तर पर लड़ने वाले कोरोना वरियर्स का गुस्सा कुछ इस कदर फूटा –
लॉक डाउन में शराब की दुकानें खोलना महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा बढ़ाने वाला कदम है। यह ठीक नही है ,दुःखद और निंदनीय है – अजय कुमार समाज सेवी/ अध्यक्ष, नव दिव्यांग सेवा संस्थान
40 दिन के यज्ञ अनुष्ठान (लॉक डाउन)की 40 मिनट मे धज्जिया उड़ गयी,क्या सोशल डिस्टनसिंग और क्या मास्क ,जो लोग कल तलक जरूरतमंद असहाय,बीमार थे जिनके लिए हमारे सहयोगी समाज सेवी स्वयं उनके घरों तक तीनो समय का खाना और बच्चो का दूध,पढाई की किताबे इत्यादि सेवाएं दे रहे थे, आज वही उनमे से कई जरूरतमंद अचानक शराब के लिए स्वस्थ हो गए,पैसा और झोला लेकर लाइन मे खड़े है बस दारू मिलजाए बाजारों मे हुजूम लगा है मानो कोरोना जैसा कुछ था ही नही,कृपया सरकारे संज्ञान ले,जीवन जरूरी है या विष (शराब)- डॉ शैलेंद्र कौशिक, कौशिक होम्यो क्लीनिक देहरादू
शराब के लिए लंबी लंबी लाइनें परेशान करने वाली जिनके लिए हमने दिन रात एक कर दी कि कहीं कोई गरीब भूखा न रहे उनकी ये तस्वीरे विचलित करती है सभी समाज सेवियों का भरोषा टूट है ऐसे में वाकई जरूरतमन्दों तक सहायता पहुचाने भी परेशानी होती है – आरिफ खान ,अध्यक्ष,NAPSR
सरकार पहाड़ियों को शराब के नस्से में डुबोकर उन्हें गुमराह करना चाहती है इनके पास कोरोना वाइरस से आर्थिक गतिविधियों पर पड़े प्रभाव से निपटने का कोई रोड मैप नही है हमारी मेहनत बेकार गयी –सुमित बहुगुणा समाजिक कार्यकर्ता/ IT-Cell पहाड़ी पार्टी
उत्तराखण्ड के कोरोना वारियर्स सीरीज की रिपोर्ट-