सुमन दिवस : श्रीदेव सुमन की पूण्य तिथि के अवसर पर जिलाधिकारी मंगेश घिल्डिया ने प्रतिमा पर माल्यार्पण किया, पढ़ें श्री देव सुमन की जीवन यात्रा ।।web news।।

Uncategorized

जिला मुख्यालय में सुमन दिवस का सादगी के साथ आयोजन

नई टिहरी।। कोरोना महामारी कोविड-19 के दृष्टिगत सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए 25 जुलाई शनिवार को जिला मुख्यालय सहित जनपदभर में सुमन दिवस सादगी के साथ मनाया जाएगा। अमर शहीद श्रीदेव सुमन की पूण्य थिति (सुमन दिवस) के अवसर पर जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने प्रातः 8:30 बजे जिला मुख्यालय पर स्थित जिला कारागार परिसर पहुंचकर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रदांजलि अर्पित की। इसके उपरांत जिलाधिकारी ने कारागार परिसर/ पार्क में वृक्षारोपण कार्यक्रम में प्रतिभाग करते हुए पौध रोपण किया। इस अवसर पर जिलाधिकारी ने कहा कि गत वर्षो में सुमन दिवस के अवसर पर आमजन के प्रतिभाग, प्रभात फेरी, दौड़ प्रतियोगिताएं एवं स्वच्छ्ता आदि कार्यक्रमो के आयोजन भी होते रहे है। कोविड 19 के कारण इस प्रकार के आयोजन करने सम्भव नही है।
सुमन दिवस के अवसर पर पौधारोपण करते हुए जिलाधिकारी

श्री देव सुमन की जन्म जंयती पर सुमन जी की जीवन यात्रा

आलेख : विनय तिवारी । अपनी जननी-जन्मभूमि को परतंत्रता की बेड़ियों से आजादी दिलाने के संकल्प को मन में लिए जीने और परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर राजशाही से मातृभूमि को आजादी दिलाने के लिए अपना जीवन अर्पण करने वाले तरुण तपस्वी श्रीदेव सुमन जी को उनके जन्मदिवस पर शत्-शत् नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि।
श्री देव सुमन जी का जन्म जिला टिहरी गढ़वाल के चम्बा ब्लॉक, बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में २५ मई १९१६ को हुआ था । इनके पिताजी का नाम पंडित हरिराम बडोनी तथा माताजी का नाम श्रीमती तारा देवी था। इनके पिता अपने क्षेत्र के लोकप्रिय वैद्य थे । सन् १९१९ में जब क्षेत्र में भयानक हैजा रोग का प्रकोप हुआ तब उन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना रोगियों की दिन रात एकनिष्ठ सेवा की। उनके परिश्रम से रोगियों को कुछ राहत तो मिली लेकिन वे स्वयं हैजा के शिकार हो गए और मात्र ३६ वर्ष की आयु में परलोक चले गये। उसके बाद सुमन जी की दृढ़ निश्चयी मां ने श्रीदेव सुमन का लालन-पालन तथा शिक्षा का उचित प्रबंध किया । सुमन जी ने पिता से लोक सेवा तथा माँ से दृढ़निश्चय के गुण अंगीकार किए । उनकी पत्नी श्रीमती विजय लक्ष्मी थी जिन्होंने हर संघर्ष में सुमन जी का साथ दिया।

सुमन जी की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव एवं चम्बा से हुई तथा टिहरी से मिडल पास किया। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने अनेकों उपाधियां प्राप्त की।
इसी दौरान सन् १९३० में वो देहरादून गए तथा वहां सत्याग्रहियों का जत्था देखा और उसमें शामिल हो गए। उसके बाद देहरादून में अध्यापक की नौकरी करने लगे। उस दौरान देहरादून में ब्रिटिश शासन के खिलाफ चल रहे आंदोलनों से प्रभावित हुए तथा टिहरी की राजशाही के अत्याचार के खिलाफ खड़े हो गए। जनता पर राजशाही के अत्याचारों से क्षुब्ध होकर इन्होंने राजशाही के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया | इस दौरान सन् १९३९ में उन्होंने टिहरी “प्रजामण्डल” की स्थापना की व राजशाही के अत्याचारों के विरुद्ध टिहरी की आम जनता को एकजुट किया। इस प्रकार वे टिहरी राजशाही के विरोध में सक्रिय भूमिका में आ गए। इसी कारण सन् १९४२ में इन्हें टिहरी के राजा की पुलिस ने गिरफ्तार कर इन पर भविष्य में टिहरी आने पर प्रतिबंध लगा दिया । इसी क्रम में ३० दिसम्बर १९४३ को इन्हें पुनः गिरफ्तार कर दिया गया। उन पर आमानवीय जुल्म किये गए तथा उनके पूरे शरीर को ३५ सेर की बेड़ियां से जकड़ दिया गया २९ फरवरी १९४५ को उन्होंने जेल में जेल प्रशासन के अभद्र व्यवहार के खिलाफ अपना अनशन शुरू किया। जिस पर राजा की ओर से आश्वासन के बाद उन्होंने अनशन समाप्त किया। लेकिन कुछ ही समय बाद टिहरी शासन अपनी हरकतों पर वापिस आ गया। जिससे आहत हो उन्होंने पुनः ३ मई १९४५ को आमरण अनशन शुरू कर दिया। इस पर जेल प्रशासन द्वारा भीषण जुल्म किये गए। सुमन जी का हौंसला टूटता हुआ नहीं दिखने पर क्रूर जेल कर्मियों ने उन्हें जानलेवा इंजेक्शन लगवाए। जिस कारण २५ जुलाई १९४४ को शाम करीब ४ बजे उस वीर अमर सेनानी ने राजशाही से अपनी मातृ भूमि एवं अपने आदर्शों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी रात जेल प्रशासन द्वारा जनता से छुपते-छुपाते इनकी मृतक देह को कंबल में लपेटकर भागीरथी-भिलंगना के संगम से गंगा नदी में डाल दिया। राजशाही का यह अपराध टिहरी राजशाही के लिये उसकी ताबूत का आखरी कील साबित हुआ । राजशाही को जनता के आक्रोश के आगे घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप राजशाही ने टिहरी प्रजामंडल को मान्यता दे दी। सन् १९४७ में प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन हुआ। सन् १९४८ में तो प्रजा ने देवप्रयाग, कीर्तिनगर और टिहरी पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार एक के बाद एक राजशाही कमजोर हो गई। इसके बाद १ अगस्त १९४९ को टिहरी रियासत का भारतीय गणराज्य में विलय हो गया। राजशाही से आजादी एवं भारतीय गणराज्य में विलय के बाद उनकी पत्नी दो बार देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक भी चुनी गईं।

©web news 2021

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *