महाशिवरात्रि विशेष : संग्रहालयों में सुरक्षित भारतीय मूर्तिकला का अद्भुत सौंदर्य

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भारत की मूर्तिकला का एक समृद्ध और सौंदर्य से परिपूर्ण इतिहास रहा है। आज महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रस्तुत है- शिव के विभिन्न रूपों को दर्शातीं स्टेट म्यूजियम, भोपाल के संग्रहालय में सुरक्षित भारतीय मूर्तिकला की कुछ अनुपम कृतियां:

उमा – महेश्वर

प्रतिहार काल की उमा – महेश्वर की यह प्रतिमा मंदसौर के इंद्रगढ़ नामक स्थान से प्राप्त की गई है। इस प्रस्तर प्रतिमा का विस्तृत दृश्य उमा – महेश्वर के भावों को प्रकट करता है। 8वीं श. ई. की इस प्रतिमा में आम के वृक्ष के नीचे शिव – पार्वती को सव्य – ललितासन में बैठे हुए शिल्पांकित किया गया है। प्रतिमा खंड पर नीचे की ओर बाल रूप में गणेश और कार्तिकेय का शिल्पांकन किया गया है।

त्रिमूर्ति (महेशमूर्ति)

कच्छपघात शैली में निर्मित इस प्रतिमा में शिव के तीन रूप – कल्याणकारी, संहारक और सृष्टि करते हुए रूप का अंकन है, इस प्रकार शिव के तत्पुरुष, वामदेव और अघोर रूप इस प्रतिमा में दृष्टिगत हैं। 10वीं श. ई. की यह प्रतिमा मुरैना के समीप पढावली नामक स्थान से प्राप्त की गई है। इस प्रतिमा का स्त्री रूप दर्पण धारण किये हुए दिखाया गया है, तत्पुरुष अक्षमाला तथा अघोर रूप रक्त का पात्र धारण किये हुए शिल्पांकित किया गया है।

शिव

शिव की यह प्रस्तर प्रतिमा भी कच्छपघात शैली में निर्मित है जो कि भिण्ड के समीप वरहद नामक जगह से प्राप्त की गई है। 11वीं एवं 12वीं श. ई. का प्रतिनिधित्व करती यह शिव प्रतिमा समपाद स्थानक मुद्रा में शिल्पांकित की गई है। इस प्रतिमा की तीन भुजाएं खंडित हैं एवं एक भुजा में कमण्डल धारण किये हुए दिखाया गया है। प्रतिमा के ऊपरी भाग पर गन्धर्व का अंकन है। यह शिव प्रतिमा चंद्र एवं सर्प से सुसज्जित है, अत्यंत सुन्दर ढंग से चित्रित जटामुकुट से सुशोभित है तथा आभूषणों में कर्ण कुण्डल, यज्ञोपवीत आदि धारण किये हुए दिखाया गया है।

शिव

हिंगलाजगढ़, जिला – मंदसौर से प्राप्त इस प्रतिमा में शिव – पार्वती के वैवाहिक दृश्य को दर्शाया गया है। 10वीं श. ई. की इस प्रतिमा में शिव को सम्पूर्ण आभूषणों जैसे कि सर्प, त्रिशूल आदि के साथ शिल्पांकित किया गया है। पार्वती शिव की ओर निहारते हुए दिखाई गई हैं। शिव का दाहिना हाथ पार्वती के हाथ को पकड़े हुए है। बाजूबंद, कंगन, पादवलय के साथ मेखला आदि आभूषणों से पार्वती सुशोभित हैं। जटामुकुट के साथ शिव के केश स्कंध तक लटक रहे हैं, साथ में यज्ञोपवीत भी धारण किये हुए हैं। भूरा – बलुआ प्रस्तर पर निर्मित यह प्रतिमा परमार कला शिल्प का अनुपम उदहारण प्रस्तुत करती है।

उमा

काकपुर, जिला – विदिशा से प्राप्त 10वीं श. ई.की इस प्रतिमा में शिव – पार्वती को विवाह के उपरांत चौपड़ खेलते हुए शिल्पांकित किया गया है। शिव को अपने वाहन नंदी और पार्वती को अपने वाहन सिंह के साथ दर्शाया गया है। इनके साथ में गणेश, कार्तिकेय और भृंगी ऋषि भी प्रतिमा में अंकित हैं। ये प्रतिमा अब भग्नावस्था में है लेकिन मूल प्रतिमा में दर्शाये गए कथानक के अनुसार शिव चौपड़ के खेल में नंदी को हार जाते
हैं, पार्वती की सखियां नंदी को अपनी ओर ले जाने के लिए रस्सी की सहायता से खींच रही हैं, वहीं स्वामिभक्त नंदी सखियों के साथ जाने से मना कर देता है, गणेश और कार्तिकेय भी नंदी की पूंछ और सींग पकड़कर उसको जाने से रोक रहे हैं।

उमा

भोपाल के नेवरी नामक स्थान से प्राप्त 10वीं श. ई. की यह प्रतिमा विशेष रूप से रावणानुग्रह के कथानक को दर्शाती है। शिव अपने वाहन नंदी पर सवार हैं, पार्वती उनके अंकपाश में शिल्पांकित हैं। परिकर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ ही मालाधारी विद्याधर और गंधर्वों की उपस्थिति दिखाई गई है। प्रतिमा के नीचे पीदपाठ में राक्षसों की उपस्थिति दर्शायी गई है, रावण को कैलाश पर्वत का भार उठाते हुए शिल्पांकित किया गया है।

उमा – महेश्वर

हरदा जिला के हण्डिया नामक स्थान से प्राप्त 13वीं श. ई. का प्रतिनिधित्व करती इस प्रतिमा में उमा – महेश्वर ललितासन मुद्रा में विराजमान हैं। परिकर पर मालाधारी विद्याधरों के साथ ब्रह्मा, विष्णु व शिव तीनों देवों को अपनी – अपनी शक्तियों के साथ दिखाया गया है। पार्वती का एक हाथ शिव के स्कंध पर है व बाएं हाथ में दर्पण है। पादपीठ पर गणेश एवं कार्तिकेय का अंकन है।

उमा – महेश्वर ( वरेश्वर)

परमार काल में निर्मित 11वीं श. ई. की यह प्रतिमा भूरा बलुआ पाषाण पर शिल्पांकित है। चतुर्भुजी शिव दायीं भुजा से पार्वती को पुष्प भेंट कर रहे हैं। पार्वती जटामुकुट, कर्णकुंडल, ग्रीवाहार, करधनी, पादवलय आदि आभूषण पहने हैं, शिव कर्णभूषण, हार, बाजूबंद, वनमाला आदि आभूषण धारण किये हुए हैं।

सदाशिव

11वीं श. ई. की सदाशिव की यह प्रतिमा विदिशा के समीप ग्यारसपुर नामक स्थान से प्राप्त की गई है।

नटराज शिव

12वीं श. ई. की शिव के नटराज रूप की यह प्रतिमा भोपाल के समीप समसगढ़ नाम की जगह से प्राप्त की गई है।

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