आतंकियों के खिलाफ चलाये जा रहे हर ऑपरेशन में बखूबी अपनी जिम्मेदारियां निभाने वाले वायु सेना के ‘गरुड़’ कमांडोज को देश की शान कहा जाता है। वायु सेना के स्पेशल फोर्सेज के और गरुड़ कमांडोज तैयार किए गए हैं, जिन्होंने हाल ही में अपना प्रशिक्षण पूरा किया है। आइए अब जानते हैं कि आखिर कैसे गरुड़ कमांडोज की तैयारी होती है और कितना मुश्किलों भरा होता है इनका रास्ता…
कैसे तैयार होते हैं गरुड़ कमांडोज ?
गरुड़ कमांडोज को करीब दो साल की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। विशेष फोर्स के लिए ट्रेनिंग के लिए उनकी सीधी भर्ती की जाती है। साथ ही एक बार गरुड़ फोर्स में शामिल होने के बाद कमांडो अपने शेष करियर के दौरान यूनिट के साथ ही रहते हैं, ताकि यूनिट के पास लंबे समय तक बेहतरीन जवान रहें। गरुड़ कमांडो में भर्ती होना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए सभी रंगरूटों को कठिन शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। इसका उद्देश्य भावी जवानों के हर परिस्थिति का मुकाबला करने के योग्य बनाना होता है।
सबसे खूंखार कमांडो में इनका नाम
यही वजह है कि भारत के सबसे खूंखार कमांडो में ‘गरुड़ कमांडो’ का नाम लिया जाता है। भारी हथियारों से लैस भारतीय वायु सेना के ये कमांडो दुश्मन को खत्म करने के लिए जाने जाते हैं। इनकी ट्रेनिंग ऐसी होती है कि ये बिना कुछ खाए हफ्ते तक संघर्ष कर सकते हैं। आर्मी के पैरा कमांडो व नेवी के मार्कोस कमांडो की तरह गरुण कमांडो भी बेहद खूंखार होते हैं। इस फोर्स का गठन वर्ष 2004 में किया गया।
मिलती है सबसे कठिन ट्रेनिंग
इन कमांडो की ट्रेनिंग स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, इंडियन आर्मी और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ भी दी जाती है। जो इस फेज में सफल होते हैं, वे अगले दौर की ट्रेनिंग में जाते हैं। इस बेहद सख्त ट्रेनिंग में सफल रहने वाले जवानों को आगरा के पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल भेजा जाता है। जहां पर मार्कोस और पैरा कमांडोज की तरह गरुड़ कमांडो भी अपने सीने पर पैरा बैज लगाते हैं। गरुड़ कमांडोज को मिजोरम में काउंटर इन्सर्जन्सी एंड जंगल वारफेयर स्कूल में भी ट्रेनिंग दी जाती है। भारतीय सेना का यह संस्थान युद्ध में विशेषज्ञता प्रदान करने वाला प्रशिक्षण संस्थान है। इस संस्थान में न केवल गरुड़ कमांडो, बल्कि दुनियाभर की सेनाओं के सिपाही काउंटर-इन्सर्जन्सी ऑपरेशन की ट्रेनिंग लेने आते हैं।
अत्याधुनिक हथियारों से लैस
गरुड़ कमांडो को अपनी ट्रेनिंग के अंतिम दौर में भारतीय सेना के पैरा कमांडोज की सक्रिय रूप से तैनात यूनिट्स के साथ फर्स्ट हैंड ऑपरेशनल एक्सपीरियंस के लिए अटैच किया जाता है। गरुड़ कमांडोज दुनिया के कुछ सबसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं, जिनमें साइड आर्म्स के तौर पर Tavor टीएआर -21 असॉल्ट राइफल, ग्लॉक 17 और 19 पिस्टल, क्लोज क्वॉर्टर बैटल के लिए हेक्लर ऐंड कॉच MP5 सब मशीनगन, AKM असॉल्ट राइफल, एक तरह की एके-47 और शक्तिशाली कोल्ट एम-4 कार्बाइन शामिल हैं। गरुड़ कमांडो के पास किलर ड्रोन्स होता हैं, जो टारगेट पर बिना किसी आवाज के मिसाइल फायर कर सकते हैं। मॉडर्न हथियारों से लैस गरुड़ कमांडो हवाई हमले, दुश्मन की टोह लेने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन्स के लिए ट्रेंड होते हैं। एयर फोर्स के कमांडो स्निपर्स से भी लैस होते हैं, जो चेहरा बदलकर दुश्मन को झांसे में लाता है। गरुड़ स्पेशल फोर्स के पास 200 UAV ड्रोन के साथ-साथ ग्रेनेड लॉन्चर भी हैं।
हैरतअंगेज कौशल का प्रदर्शन
गौरतलब हो, जिन्होंने हाल ही में अपना प्रशिक्षण पूरा किया है उन गरुड़ कमांडोज की गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केंद्र में मरून बेरेट सेरेमोनियल परेड हुई, जिसमें कमांडोज ने हैरतअंगेज कौशल का प्रदर्शन किया। वायु सेना विशेष बल ‘गरुड़’ कमांडो के प्रशिक्षण के सफल समापन के अवसर पर एयर फोर्स स्टेशन चांदीनगर के गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र (जीआरटीसी) में मरून बेरेट औपचारिक परेड हुई। वायु सेना मुख्यालय के सहायक प्रमुख एयर स्टाफ ऑपरेशंस (अफेन्सिव) एयर वाइस मार्शल राकेश सिन्हा ने मुख्य अतिथि के तौर पर परेड की समीक्षा की। गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र के कमांडेंट विंग कमांडर त्रिलोक शर्मा ने मुख्य अतिथि की अगवानी की।
मुख्य अतिथि एयर वाइस मार्शल ने गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र से सफलतापूर्वक पास होने वाले गरुड़ कमांडो को बधाई दी। युवा कमांडो को संबोधित करते हुए उन्होंने बदलते हुए सुरक्षा परिदृश्य के साथ तालमेल रखने के लिए विशेष बलों के कौशल के प्रशिक्षण और सम्मान के महत्व पर जोर दिया। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि ने प्रशिक्षुओं के लिए उच्च स्तर की व्यावसायिकता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने प्रशिक्षण देने वाले कर्मचारियों को उनकी कड़ी मेहनत के लिए बधाई दी और उन्हें अपना उच्च स्तर बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
विभिन्न कौशलों का किया प्रदर्शन
एयर वाइस मार्शल ने सफल गरुड़ प्रशिक्षुओं को मरून बेरेट, गरुड़ प्रवीणता बैज और विशेष बल टैब प्रदान किए और पास होने वाले मेधावी प्रशिक्षुओं को ट्राफियां प्रदान कीं। एलएसी जोंधले एस. बालासाहेब को सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडर ट्रॉफी प्रदान की गई। इस समारोह के एक हिस्से के रूप में गरुड़ कमांडोज ने लड़ाकू फायरिंग कौशल, बंधकों को मुक्त कराने, फायरिंग ड्रिल, आक्रमण विस्फोटक, बाधा क्रॉसिंग ड्रिल, दीवार पर चढ़ने, फिसलने, रैपलिंग और सैन्य मार्शल आर्ट्स जैसे विभिन्न कौशलों का प्रदर्शन किया।
कमांडोज के लिए गर्व और उपलब्धि का पल
मरून बेरेट औपचारिक परेड पास होने वाले युवा गरुड़ के लिए गर्व और उपलब्धि का विशिष्ट क्षण होता है। कठिन प्रशिक्षण की समाप्ति के बाद यह परेड इन कमांडोज के विशेष बल में परिवर्तन होने तथा देश की सेवा करने के लिए कुलीन बल में शामिल होने का प्रतीक है। मरून बेरेट सेरिमोनियल परेड गरुड़ कमांडोज के लिए गर्व और उपलब्धि का एक पल रहा जो युवा स्पेशल फोर्सेज ऑपेरेटर्स के रूप में उनके प्रशिक्षण की परिणति का द्योतक है।
आतंकियों के खिलाफ चलाये जा रहे हर ऑपरेशन में बखूबी अपनी जिम्मेदारियां निभाने वाले वायु सेना के ‘गरुड़’ कमांडोज को देश की शान कहा जाता है। वायु सेना के स्पेशल फोर्सेज के और गरुड़ कमांडोज तैयार किए गए हैं, जिन्होंने हाल ही में अपना प्रशिक्षण पूरा किया है। आइए अब जानते हैं कि आखिर कैसे गरुड़ कमांडोज की तैयारी होती है और कितना मुश्किलों भरा होता है इनका रास्ता…
कैसे तैयार होते हैं गरुड़ कमांडोज ?
गरुड़ कमांडोज को करीब दो साल की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। विशेष फोर्स के लिए ट्रेनिंग के लिए उनकी सीधी भर्ती की जाती है। साथ ही एक बार गरुड़ फोर्स में शामिल होने के बाद कमांडो अपने शेष करियर के दौरान यूनिट के साथ ही रहते हैं, ताकि यूनिट के पास लंबे समय तक बेहतरीन जवान रहें। गरुड़ कमांडो में भर्ती होना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए सभी रंगरूटों को कठिन शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। इसका उद्देश्य भावी जवानों के हर परिस्थिति का मुकाबला करने के योग्य बनाना होता है।
सबसे खूंखार कमांडो में इनका नाम
यही वजह है कि भारत के सबसे खूंखार कमांडो में ‘गरुड़ कमांडो’ का नाम लिया जाता है। भारी हथियारों से लैस भारतीय वायु सेना के ये कमांडो दुश्मन को खत्म करने के लिए जाने जाते हैं। इनकी ट्रेनिंग ऐसी होती है कि ये बिना कुछ खाए हफ्ते तक संघर्ष कर सकते हैं। आर्मी के पैरा कमांडो व नेवी के मार्कोस कमांडो की तरह गरुण कमांडो भी बेहद खूंखार होते हैं। इस फोर्स का गठन वर्ष 2004 में किया गया।
मिलती है सबसे कठिन ट्रेनिंग
इन कमांडो की ट्रेनिंग स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, इंडियन आर्मी और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ भी दी जाती है। जो इस फेज में सफल होते हैं, वे अगले दौर की ट्रेनिंग में जाते हैं। इस बेहद सख्त ट्रेनिंग में सफल रहने वाले जवानों को आगरा के पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल भेजा जाता है। जहां पर मार्कोस और पैरा कमांडोज की तरह गरुड़ कमांडो भी अपने सीने पर पैरा बैज लगाते हैं। गरुड़ कमांडोज को मिजोरम में काउंटर इन्सर्जन्सी एंड जंगल वारफेयर स्कूल में भी ट्रेनिंग दी जाती है। भारतीय सेना का यह संस्थान युद्ध में विशेषज्ञता प्रदान करने वाला प्रशिक्षण संस्थान है। इस संस्थान में न केवल गरुड़ कमांडो, बल्कि दुनियाभर की सेनाओं के सिपाही काउंटर-इन्सर्जन्सी ऑपरेशन की ट्रेनिंग लेने आते हैं।
अत्याधुनिक हथियारों से लैस
गरुड़ कमांडो को अपनी ट्रेनिंग के अंतिम दौर में भारतीय सेना के पैरा कमांडोज की सक्रिय रूप से तैनात यूनिट्स के साथ फर्स्ट हैंड ऑपरेशनल एक्सपीरियंस के लिए अटैच किया जाता है। गरुड़ कमांडोज दुनिया के कुछ सबसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं, जिनमें साइड आर्म्स के तौर पर Tavor टीएआर -21 असॉल्ट राइफल, ग्लॉक 17 और 19 पिस्टल, क्लोज क्वॉर्टर बैटल के लिए हेक्लर ऐंड कॉच MP5 सब मशीनगन, AKM असॉल्ट राइफल, एक तरह की एके-47 और शक्तिशाली कोल्ट एम-4 कार्बाइन शामिल हैं। गरुड़ कमांडो के पास किलर ड्रोन्स होता हैं, जो टारगेट पर बिना किसी आवाज के मिसाइल फायर कर सकते हैं। मॉडर्न हथियारों से लैस गरुड़ कमांडो हवाई हमले, दुश्मन की टोह लेने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन्स के लिए ट्रेंड होते हैं। एयर फोर्स के कमांडो स्निपर्स से भी लैस होते हैं, जो चेहरा बदलकर दुश्मन को झांसे में लाता है। गरुड़ स्पेशल फोर्स के पास 200 UAV ड्रोन के साथ-साथ ग्रेनेड लॉन्चर भी हैं।
हैरतअंगेज कौशल का प्रदर्शन
गौरतलब हो, जिन्होंने हाल ही में अपना प्रशिक्षण पूरा किया है उन गरुड़ कमांडोज की गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केंद्र में मरून बेरेट सेरेमोनियल परेड हुई, जिसमें कमांडोज ने हैरतअंगेज कौशल का प्रदर्शन किया। वायु सेना विशेष बल ‘गरुड़’ कमांडो के प्रशिक्षण के सफल समापन के अवसर पर एयर फोर्स स्टेशन चांदीनगर के गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र (जीआरटीसी) में मरून बेरेट औपचारिक परेड हुई। वायु सेना मुख्यालय के सहायक प्रमुख एयर स्टाफ ऑपरेशंस (अफेन्सिव) एयर वाइस मार्शल राकेश सिन्हा ने मुख्य अतिथि के तौर पर परेड की समीक्षा की। गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र के कमांडेंट विंग कमांडर त्रिलोक शर्मा ने मुख्य अतिथि की अगवानी की।
मुख्य अतिथि एयर वाइस मार्शल ने गरुड़ रेजिमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र से सफलतापूर्वक पास होने वाले गरुड़ कमांडो को बधाई दी। युवा कमांडो को संबोधित करते हुए उन्होंने बदलते हुए सुरक्षा परिदृश्य के साथ तालमेल रखने के लिए विशेष बलों के कौशल के प्रशिक्षण और सम्मान के महत्व पर जोर दिया। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि ने प्रशिक्षुओं के लिए उच्च स्तर की व्यावसायिकता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने प्रशिक्षण देने वाले कर्मचारियों को उनकी कड़ी मेहनत के लिए बधाई दी और उन्हें अपना उच्च स्तर बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
विभिन्न कौशलों का किया प्रदर्शन
एयर वाइस मार्शल ने सफल गरुड़ प्रशिक्षुओं को मरून बेरेट, गरुड़ प्रवीणता बैज और विशेष बल टैब प्रदान किए और पास होने वाले मेधावी प्रशिक्षुओं को ट्राफियां प्रदान कीं। एलएसी जोंधले एस. बालासाहेब को सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडर ट्रॉफी प्रदान की गई। इस समारोह के एक हिस्से के रूप में गरुड़ कमांडोज ने लड़ाकू फायरिंग कौशल, बंधकों को मुक्त कराने, फायरिंग ड्रिल, आक्रमण विस्फोटक, बाधा क्रॉसिंग ड्रिल, दीवार पर चढ़ने, फिसलने, रैपलिंग और सैन्य मार्शल आर्ट्स जैसे विभिन्न कौशलों का प्रदर्शन किया।
कमांडोज के लिए गर्व और उपलब्धि का पल
मरून बेरेट औपचारिक परेड पास होने वाले युवा गरुड़ के लिए गर्व और उपलब्धि का विशिष्ट क्षण होता है। कठिन प्रशिक्षण की समाप्ति के बाद यह परेड इन कमांडोज के विशेष बल में परिवर्तन होने तथा देश की सेवा करने के लिए कुलीन बल में शामिल होने का प्रतीक है। मरून बेरेट सेरिमोनियल परेड गरुड़ कमांडोज के लिए गर्व और उपलब्धि का एक पल रहा जो युवा स्पेशल फोर्सेज ऑपेरेटर्स के रूप में उनके प्रशिक्षण की परिणति का द्योतक है।