कश्मीर को लद्दाख से कनेक्ट करने वाले जोजिला दर्रे को शनिवार को औपचारिक तौर पर यातायात के लिए बहाल कर दिया गया। बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी संभाली है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बीआरओ इस वर्ष 73 दिनों के रिकॉर्ड समय के बीच जोजिला दर्रा खोलने का कार्य करने जा रही है।
11,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोजिला दर्रा
शनिवार से श्रीनगर-लेह राजमार्ग को यातायात के लिए बहाल कर दिया गया है। आमतौर पर करीब 150 दिन तक बंद रहने वाले इस मार्ग को बीते वर्ष बीआरओ ने कड़ी मशक्कत के बाद 110 दिन के भीतर खोला था।लेकिन इस बार का टार्गेट और भी कम दिनों का रखा गया है। इसलिए बीआरओ के लिए मुश्किलें भी कम नहीं होंगी।
गौरतलब हो, करीब 11,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोजिला दर्रा श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण दर्रा है और लद्दाख संभाग में तैनात भारतीय सेना और अन्य सुरक्षाबलों के ऑपरेशनल तैयारियों के लिए लाइफलाइन माना जाता है।
बर्फबारी के बाद नवंबर के दूसरे सप्ताह में जोजिला दर्रा हो जाता है बंद
सर्दियों की शुरुआत में बर्फबारी के बाद अक्सर यह दर्रा नवंबर के दूसरे सप्ताह में बंद हो जाता है और अप्रैल के आखिरी सप्ताह में खोला जाता है। जोजिला दर्रा, सोनमर्ग, गांदरबल से श्रीनगर की ओर 108 किलोमीटर की जिम्मेदारी प्रोजेक्ट बीकन के पास है, जबकि जोजिला के उस पार गुमरि से आगे लेह की ओर बीआरओ का प्रोजेक्ट विजयक सभी जिम्मेदारियां निभाता है।
छह जनवरी से जोजिला दर्रा को यातायात के लिए किया गया था बंद
इस बार भारी बर्फबारी के चलते छह जनवरी से जोजिला दर्रा को यातायात के लिए बंद कर दिया गया था और मौसम साफ रहने के चलते तीन फरवरी से यहां बर्फ हटाने का काम शुरू कर दिया गया था, जो लगभग पूरा हो चुका है। जोजिला दर्रा पर करीब 15 फुट से अधिक बर्फ जमा थी, लेकिन कई जगहों पर हिमस्खलन के चलते अभी भी 30 फुट से अधिक बर्फ है, जिसे काटकर रास्ता निकाला गया है।
90 सदस्यीय टीम के कड़े प्रयासों से यातायात के लिए खोला गया यह मार्ग
जोजिला दर्रा के ओआईसी कप्तान रितुल और आईसी (जेई) अमनदीप सिंह व उनकी 90 सदस्यीय टीम के कड़े प्रयासों से 19 मार्च को इस दर्रे को यातायात के लिए खोल दिया जाएगा।
मार्ग की बहाली से लद्दाख के लोगों को मिलेगी राहत
इससे लद्दाख के लोगों को काफी राहत मिलेगी जो इस मार्ग के बंद होने पर हवाई मार्ग पर निर्भर होते हैं। साथ ही सेना की काफिले की आवाजाही भी अब आसानी से हो पाएगी। बता दें कि विपरीत परिस्थितियों में हमेशा बीआरओ ने अपना लोहा मनवाया है और इस चुनौती को पूरा कर उन्होंने अपने उद्देश्य को साबित किया है।