पीएम जन-धन योजना: 8 साल में 46.25 करोड़ खोले गए खाते

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आज देश के सुदूर किसी छोटे गांव तक सरकारी योजनाएं और तमाम वित्तीय सुविधाएं पहुंच रही हैं, तो केंद्र सरकार की उस सोच का नजीता है, जिसने सिस्टम में पारदर्शिता लाने के लिए कई जतन किए। प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) भी उनमें से एक है। समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों तक आर्थिक मदद पहुंचाने, बीमा और पेंशन, ऋण, निवेश से संबंधित विभिन्न वित्तीय उत्पादों को पहुंचाने के लिए जन-धन योजना की शुरुआत की गई। आज किसान सम्मान निधि हो, उज्जवला योजना, कोरोना काल में वित्तीय मदद जैसी तमाम योजनाओं का लाभ लाभार्थियों तक बिना किसी बिचौलिए के डायरेक्ट पहुंच रहा है। आज PMJDY ने सफलतापूर्वक अपने आठ साल पूरे कर लिए हैं।

क्या है जन-धन योजना

दरअसल वित्त मंत्रालय हाशिए पर रहने वाले और अब तक सामाजिक-आर्थिक रूप से उपेक्षित वर्गों का वित्तीय समावेशन करने और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्तीय समावेशन का मतलब है- कमजोर समूहों जैसे निम्न आय वर्ग और गरीब वर्ग, जिनकी सबसे बुनियादी बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच नहीं है, उन्हें समय पर किफायती दर पर उचित वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराना। इस योजना के बाद देश के आर्थिक रूप से कमोजर वर्ग का भी बैंक में जीरो बैलेंस पर खाता खुलवाया गया। जिसकी वजह से आज गरीबों की बचत को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाने का अवसर मिल रहा है, गांवों में अपने परिवारों को पैसे भेजने के अलावा उन्हें सूदखोर साहूकारों के चंगुल से बाहर निकालने का मौका दे रहा है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) इस प्रतिबद्धता की दिशा में एक अहम पहल है, जो वित्तीय समावेशन से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी पहलों में से एक है।

कब हुआ लागू

सत्ता में आने के बाद ही सबका साथ, सबका विकास के तहत पीएम मोदी ने 15 अगस्त 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) की घोषणा की थी। 28 अगस्त को इस योजना की शुरुआत करते हुए, पीएम ने इस मौके को गरीबों की एक दुष्चक्र से मुक्ति का उत्सव कहा था। इस मौके पर वित्त मंत्री ने कहा, “पीएमजेडीवाई के बुनियादी उद्देश्यों जैसे, बैंकिंग सेवा से वंचित लोगों को बैंकिंग सेवा से जोड़ना, असुरक्षित को सुरक्षित बनाना और गैर-वित्तपोषित लोगों का वित्त पोषण करने जैसे कदमों ने वित्तीय सेवाओं से वंचित और अपेक्षाकृत कम वित्तीय सेवा हासिल करने वाले इलाकों को सुविधा प्रदान की है। साथ ही प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए बहु-हितधारकों के सहयोगात्मक दृष्टिकोण को अपनाना संभव बनाया है।”

जन-धन योजना का उद्देश्य

टेक्नोलॉजी के सपोर्ट से लागत घटाने और ज्यादा ज्यादा लोगों तक पहुंच कायम करना है. सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना आजाद भारत में अनूठी उपलब्धि हासिल करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेश (Financial Inclusion) पहलों में से एक है।

योजना की उपलब्धि

–28 अगस्त 2014 से 10 अगस्त 2022 तक पीएमजेडीवाई खातों की कुल संख्या: 46.25 करोड़ है।

–इस योजना के पहले वर्ष के दौरान 17.90 करोड़ पीएमजेडीवाई खाते खोले गए।

–इन खातों में 1.74 लाख करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं।

–योजना का विस्तार 67 फीसदी (30.89 करोड़) ग्रामीण या अर्ध-शहरी क्षेत्रों तक हो चुका है।

–56 फीसदी जनधन खाताधारक महिलाएं हैं।

–पीएमजेडीवाई के तहत खातों की संख्या में लगातार वृद्धि।

 कोविड-19 के दौरान आत्मनिर्भर पैकेज के तहत ‘जन धन’ को सभी कल्याणकारी योजनाओं के चैनल के रूप में देखा गया।

–सरकार ने कुछ संशोधनों के साथ व्यापक पीएमजेडीवाई कार्यक्रम को 28 अगस्त 2018 से आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। अब ‘हर परिवार’ से हटकर अब ‘बैंकिंग सेवा से वंचित हर वयस्क’ पर ध्यान।

–28अगस्त 2018 के बाद खोले गए पीएमजेडीवाई खातों के लिए रुपे कार्ड पर मुफ्त दुर्घटना बीमा कवर एक लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया गया है।

— ओवरड्राफ्ट की सीमा को 5,000/- रुपये से दोगुनी करते हुए 10,000/- रुपये की गई; 2,000/- रुपये तक का ओवरड्राफ्ट बिना शर्तों के मिलेगा।

— ओवरड्राफ्ट के लिए अधिकतम आयु सीमा को 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष किया गया।

डीबीटी लेनदेन में सुगमता

बैंकों के मुताबिक करीब 5.4 करोड़ पीएमजेडीवाई खाताधारक विभिन्न योजनाओं के तहत सरकार से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) प्राप्त करते हैं।

डिजिटल लेनदेन

पीएमजेडीवाई के तहत 31.94 करोड़ रुपे डेबिट कार्ड जारी करने के साथ ही, जून 2022 तक 61.69 लाख पीओएस/एमपीओएस मशीनें लगाई गईं और यूपीआई जैसी मोबाइल आधारित भुगतान प्रणाली की शुरुआत के साथ, डिजिटल लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 978 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 7,195 करोड़ हो गई है। यूपीआई वित्तीय लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 1.79 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 4,596 करोड़ हो गई है। इसी प्रकार, पीओएस और ई-कॉमर्स में रुपे कार्ड लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 28.28 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 151.64 करोड़ हो गई है।

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