मिथिला मखाना को मिला GI Tag,पढ़े खबर

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त्योहारी सीजन से पहले केंद्र सरकार ने मखाना उत्पादन करने वाले किसानों को बड़ा तोहफा दिया है। केंद्र सरकार ने मिथिला मखाना को जीआई टैग प्रदान किया है। इससे उत्‍पादकों को मखाना उत्‍पाद का अधिकतम मूल्य मिलेगा। इस फैसले से बिहार के मिथिला क्षेत्र के पांच लाख से अधिक किसानों को फायदा होगा।

इस बारे में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट में कहा है कि मिथिला मखाना के जीआई टैग के साथ पंजीकृत होने से किसानों को लाभ मिलेगा और उनकी आमदनी बढ़ जाएगी।

बता दें कि किसी उत्पाद को जीआई टैग मिलने पर कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसी तरह की सामग्री को उसी नाम से नहीं बेच सकती। इस टैग की मान्‍यता दस वर्षों के लिए है और बाद में इसका नवीनीकरण किया जा सकता है।https://platform.twitter.com/embed/Tweet.html?dnt=true&embedId=twitter-widget-0&features=eyJ0ZndfdGltZWxpbmVfbGlzdCI6eyJidWNrZXQiOlsibGlua3RyLmVlIiwidHIuZWUiXSwidmVyc2lvbiI6bnVsbH0sInRmd19ob3Jpem9uX3RpbWVsaW5lXzEyMDM0Ijp7ImJ1Y2tldCI6InRyZWF0bWVudCIsInZlcnNpb24iOm51bGx9LCJ0ZndfdHdlZXRfZWRpdF9iYWNrZW5kIjp7ImJ1Y2tldCI6Im9uIiwidmVyc2lvbiI6bnVsbH0sInRmd19yZWZzcmNfc2Vzc2lvbiI6eyJidWNrZXQiOiJvbiIsInZlcnNpb24iOm51bGx9LCJ0ZndfdHdlZXRfcmVzdWx0X21pZ3JhdGlvbl8xMzk3OSI6eyJidWNrZXQiOiJ0d2VldF9yZXN1bHQiLCJ2ZXJzaW9uIjpudWxsfSwidGZ3X3NlbnNpdGl2ZV9tZWRpYV9pbnRlcnN0aXRpYWxfMTM5NjMiOnsiYnVja2V0IjoiaW50ZXJzdGl0aWFsIiwidmVyc2lvbiI6bnVsbH0sInRmd19leHBlcmltZW50c19jb29raWVfZXhwaXJhdGlvbiI6eyJidWNrZXQiOjEyMDk2MDAsInZlcnNpb24iOm51bGx9LCJ0ZndfZHVwbGljYXRlX3NjcmliZXNfdG9fc2V0dGluZ3MiOnsiYnVja2V0Ijoib24iLCJ2ZXJzaW9uIjpudWxsfSwidGZ3X3R3ZWV0X2VkaXRfZnJvbnRlbmQiOnsiYnVja2V0Ijoib2ZmIiwidmVyc2lvbiI6bnVsbH19&frame=false&hideCard=false&hideThread=false&id=1561012403072278529&lang=en&origin=https%3A%2F%2Fnewsonair.com%2Fhindi%2F2022%2F08%2F21%2Fmithila-makhana-ko-mila-gi-tag-kis%2F&sessionId=1421cabcec89501d6c67b6a902c607c14ded076c&theme=light&widgetsVersion=31f0cdc1eaa0f%3A1660602114609&width=550px

बिहार मखाना का प्रमुख उत्पादक राज्य है, जो देश के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत हिस्सा है। बिहार का मखाना पूरे भारत के अलावा चीन, जापान और थाईलैंड में बहुत लोकप्रिय है।

क्या होता है जीआई टैग

जीआई टैग यानि जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग (Geographic Indication tag) ये एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी उत्पाद को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा उत्पाद जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्रकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है।

जीआई कानून कब बना

देश के संसद में जीआई कानून 2003 में पास हुआ। ये कानून भारत की विरासत, समृद्धता और पहचान को बचाने और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध करने में कानूनी कवायद है। इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ।

जीआई टैग की आवश्यकता क्यों पड़ी 

दरअसल, भारत में शिल्पियों, बुनकरों, किसानों की हजारों साल पुरानी समृद्ध विरासत, धरोहर और परंपरा है। भारत को सोने चिड़िया इन्हीं विरासतों की वजह से कहा जाता है। लेकिन देखा गया कि समय के साथ दुनिया के तमाम देश भारत पर आर्थिक अतिक्रमण करना शुरू करने लगे और यहां के उत्पादों की नकल कर नकली सामानों को बाजार में बेच रहे हैं। जबकि वे सभी हमारी धरोहर और विरासत हैं। ऐसे में इन नकली सामानों से बचाने का जीआई टैग एक मात्र कानूनी हथियार है। इस टैग से उत्पाद को बनाने, प्रोडक्शन करने की गारंटी उसी ज्योग्राफिकल एरिया में होती है। लेकिन सामान पूरी दुनिया में बेचा जाएगा। यही इस कानून की सबसे बड़ी विशेषता है।

कौन देता है जीआई टैग 

वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की ओर से जीआई टैग दिया जाता है। किसी उत्पाद के लिए के लिए जीआई टैग हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है। ये इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के अधीन है, जो पूरे देश में सिर्फ चेन्नई में ही होता है। इसकी प्रक्रिया के बारे में बात करें, तो कोई भी उत्पादक संघ या निजी व्यक्ति जीआई के लिए फाइल नहीं कर सकता है। इसके लिए किसी भी इलाके के संस्था, सोसाइटी, कॉपरेटिव, ओएफपीओ आदि जीआई के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा बाहर की कोई संस्था स्थानीय जीआई के लिए आवेदन नहीं कर सकती है। एक बार जीआई टैग का अधिकार मिल जाने के बाद 10 वर्षों तक जीआई टैग मान्य होते हैं। इसके बाद उन्हें फिर रिन्यू कराना पड़ता है।

दूसरे देशों में मिल रही जीआई टैग उत्पाद को पहचान

विविधता पूर्ण देश में बहुत सी चीज ऐसी अनूठी और अद्वितीय है। जीआई आज ट्राइफेड, नाबार्ड, एमएसएमई, राज्यों और विभागों के सहयोग से एक अभियान का रूप ले चुका है। भारत, जहां हर कोने में विविधताएं भरी हुई हैं, वहां दस हजार से ज्यादा जीआई होने की संभावना है। सरकार इस समय काफी प्रोएक्टिव है।

जीआई के शिल्पियों और उत्पादों के प्रचार प्रसार के लिए एंबेसी के माध्यम से विदेशों प्रचार प्रसार कर रही है। अलग योजनाएं बना रही है। पिछले सात वर्षों में हमारे देश से जीआई उत्पादों का काफी निर्यात हो रहा है। खास बात ये है कि वर्तमान में आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल से जीआई से जोड़ दिया गया है। इसकी वजह से सभी विभाग इस पर फोकस कर रहे हैं।

 कई राज्य को मिल सकता है एक उत्पाद के लिए जीआई टैग

कई उत्पाद ऐसे होते हैं, जो देश के कई प्रदेशों में पाए जाते हैं। बासमती चावल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि बासमती चावल भारत का नहीं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चावल में से एक है। यह सात राज्यों में पाया जाता है और इन सभी को जीआई टैग मिला है। उसी तरह फुलकारी के लिए पंजाब के साथ ही हरियाणा और राजस्थान को भी दिया गया है। यानि अगर एक समान या उत्पाद एक से अधिक राज्य में होते हैं तो उन्हें संयुक्त रूप से जीआई टैग मिल सकता है।

जीआई टैग का महत्व

अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है। इससे टूरिज्म और निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है। इसके अलावा भारत में अधिकता वाले उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है।

भारत में दार्जिलिंग चाय, कश्मीर की पश्मीना, चंदेरी की साड़ी, नागपुर का संतरा, छत्तीसगढ़ का जीराफूल, ओडिशा की कंधमाल, गोरखपुर में टेराकोटा के उत्पाद, कश्मीरी का केसर, कांजीवरम की साड़ी, मलिहाबादी आम आदि।

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