माटी संस्था व अरमान फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में महिला अधिकार एवं सुरक्षा विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया
माटी संस्था व अरमान फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में
जागरूकता के लिए महिला अधिकार एवं सुरक्षा विषय पर राष्ट्रीय बेविनार का आयोजन किया गया गया । संगोष्ठी का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों खासकर महिलाओं को महिला अपराध, सुरक्षा तथा संवैधानिक व कानूनी अधिकारो के प्रति जागरूक करना है। बेविनार के मुख्य वक्ताओ मीनाक्षी शर्मा (सहयाक निदेशक व कार्यालय प्रमुख, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, क्षेत्रीय कार्यालय राँची, झारखण्ड),डॉ० सादिक़ रज़्ज़ाक़ (अध्यक्ष, स्नाकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखण्ड),श्वेता चौबे (पुलिस अधीक्षक, सिटी देहारादून, उत्तराखण्ड) ,धीरेन्द्र मुद्दगल (अधिवक्ता) ने महिला सुरक्षा , महिला अपराध के सामाजिक व सांस्कृतिक पक्ष,महिला के साथ ही रहे अपराधों का मनोवैज्ञानिक पक्ष, महिलाओं के कानूनी अधिकार , पुलिस प्रशासन द्वारा किये जा रहे कार्य आदि बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी, इस राष्ट्रीय बेविनार में देश के 23 राज्यों से कुल 150 से ज्यादा प्रतिभागियों ने भाग लिया।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ताओं ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए।
उन्होंने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि महिलाओं को अपने अधिकार व आत्म सम्मान के लिए खुद आगे आने की जरूरत है। महिलाओं के अंदर वह शक्ति है जिससे समाज में हो रहे उनके प्रति अत्याचार को रोका जा सकता है इसके लिए जरूरी है कि शिक्षाविदों व बौद्धिक लोगों के द्वारा ऐसे संगोष्ठियों के माध्यम से नयी व पुरानी पीढ़ी के महिलाओं को उनके प्रति होने वाले अपराधों के प्रति जागरूक किया जाए।
◆तत्यपश्चयात राष्ट्रीय वेबिनार संगोष्ठी की संचालिका डॉ० साधना अवस्थी ने माटी संस्था के विभिन्न वैज्ञानिक व सामाजिक कार्यो तथा संस्था के मूल उद्देश्यों से संगोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथिगणों व प्रतिभागियों को करवाया।
◆ तत्यपश्चयत अरमान फाउंडेशन के निदेशक श्री रोहित श्रीवास्तव ने भी अपने संस्था के द्वारा किए जा रहे कार्यों से संगोष्ठी को अवगत कराया।
◆इस संगोष्ठी में प्रथम अतिथि वक्ता मीनाक्षी शर्मा (सहयाक निदेशक व कार्यालय प्रमुख, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, क्षेत्रीय कार्यालय राँची, झारखण्ड) ने महिला अपराध के सामाजिक व सांस्कृतिक पक्ष को संगोष्ठी के समक्ष रखा। अपने इस प्रश्न के जबाब में उन्होने कहा कि महिला अपराध के पीछे पुरुष सत्तात्मक परिवेश व संस्कृति, महिलाओं को गैर – बराबरी का बोध करवाना तथा इन्हे उपभोग की वस्तु समझने जैसी मानसिकता जिम्मेदार है। ऐसी मानसिकता के कारण पुरुषों में अपनी पुरुष शक्ति के माध्यम से महिला को नियंत्रण करने कि सोच सदेव विकसित होती रहती है जिसे कही न कही सामाजिक स्वीकृति भी मिली होती है।
◆ तत्पश्चात दूसरे अतिथि वक्ता डॉ० सादिक़ रज़्ज़ाक़ (अध्यक्ष, स्नाकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखण्ड) ने महिला के प्रति हो रहे अपराधों के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर अपने विचार प्रकट किए।
◆तीसरे अतिथि वक्ता के रूप में श्वेता चौबे (पुलिस अधीक्षक, सिटी देहारादून, उत्तराखण्ड) ने अपने वीडियो संदेश के माध्यम से संगोष्ठी में अपने विचार रखे साथ ही महिला अपराध से संबन्धित राज्य की पुलिसप्रशासन के द्वारा किए जा रहे कार्यो से अवगत कराया।
◆ संगोष्ठी के अंतिम वक्ता के रूप में धीरेन्द्र मुद्दगल (अधिवक्ता) ने आईपीसी, सीपीसी व अन्य विभिन्न धाराओं के तहत महिलाओं को मिले कानूनी अधिकारों को विस्तृत रूप सेजानकारी प्रदान किया।
◆ संगोष्ठी के अंतिम सत्र में महिला अधिकार एवं सुरक्षा से संबंधित परिचर्चा की गयी जिसमे इस संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागियों के प्रश्नों के रूप में उनकी जिज्ञासाओं का निवारण व्यक्ताओ ने अपने उत्तर के मध्याम से किया।
◆संगोष्ठी के अंत माटी संस्था के संस्थापक व वैज्ञानिक वेद प्रकाश ने सभी सम्मानित अतिथि गणों श्रोता गणों व प्रतिभागियों को इस सेमिनार में सम्मिलित होने के लिए धन्यवाद ज्ञापन किया।
राष्ट्रीय वेबिनार संगोष्ठी की तकनीकी व संयोजन टीम इस प्रकार है ।
राष्ट्रीय वेबिनार संगोष्ठी के सफल आयोजन में माटी संस्था के अंकिता राजपूत , समन्वयक जोखन शर्मा, तकनीकी सहायक के रूप में प्रतीक्षा महर ने प्रमुख योगदान किया साथ ही माटी संस्था व अरमान फाउंडेशन के सदस्यों एंव पदाधिकारियों का सहयोग रहा।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग किया ।
माटी संस्था, देहारादून के निदेशक प्रोफेसर ध्यानेन्द्र कुमार, वेद प्रकाश (संस्थापक व वैज्ञानिक, माटी संस्था), अंकिता राजपूत (सह-संस्थापक व वैज्ञानिक, माटी संस्था) व रोहित श्रीवास्तव (निदेशक, अरमान फाउंडेशन) श्वेता चौबे (पुलिस अधीक्षक, सिटी देहारादून, उत्तराखण्ड), मीनाक्षी शर्मा (सहयाक निदेशक व कार्यालय प्रमुख, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, क्षेत्रीय कार्यालय राँची, झारखण्ड), धीरेन्द्र मुद्दगल (अधिवक्ता, ईलाहाबाद हाई कोर्ट, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) एवं डॉ0 सादिक़ रज़्ज़ाक़ (अध्यक्ष, स्नाकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखण्ड