माटी संस्था, देहरादून की ओर से “आलू की खेती: जीविकोपार्जन का एक उत्तम विकल्प ” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन।
देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका के अवसर बढ़ाने के अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के क्रम में आज “माटी जैव विविधता संरक्षण और सामाजिक अनुसंधान संगठन” देहरादून, ने “आलू (सोलनम ट्यूबरोसम) की खेती जीविका उपार्जन का एक उत्तम विकल्प” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
माटी संस्था के संस्थापक वैज्ञानिक डॉ० वेद कुमार ने अपने उद्बोधन भाषण में कहा ।
माटी संस्था के संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० वेद कुमार ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा की ‘यह प्रशिक्षण कार्यक्रम हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की उस अपील को ध्यान मे रखते हुए कराया गया, जिसमे उन्होने देश को “आत्मनिर्भर भारत” बनाने की बात कही थी। माटी संस्था शुरुवात से ही अनेक ऐसे सामाजिक सरोकार संबन्धित कार्य करती आई है, जिससे देश व समाज आत्मनिर्भर बने।‘ वही संस्था के सह-संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० अंकिता राजपुत ने कहा की इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मूल उद्देश्य देश के युवाओं को ग्रामीण कृषि स्वरोज़गार हेतु प्रेरित करने के साथ उन्हे कृषि संबन्धित वर्तमान में आधुनिक तकनीकी ज्ञान से परिचित करवाना है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रथम वक्ता प्रोफेसर वी० एल० सक्सेना ने कहा ।
इस एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुवात प्रोफेसर वी० एल० सक्सेना, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन, कोलकाता के द्वारा की गयी। इन्होने अपने उदघाटन उद्बोधन के दौरान बताया कि ‘इस तरह की प्रशिक्षण कार्यशालाएं विधार्थियों के लिए उपयोगी हैं, जो न केवल उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायता करती हैं, अपितु देश के जाने-माने वैज्ञानिक व् विशेषज्ञों से रूबरू होकर अपनी शंकाओं का निवारण भी करने का मौका मिलता है। प्रोफेसर सक्सेना ने बताया कि माटी संगठन इस प्रकार की कार्यशालाओं का आयोजन लगातार करवाता रहा है, जो कि एक सराहनीय कदम है।
प्रशिक्षण के द्वितीय वक्ता प्रोफेसर वी० एल० सक्सेना ने कहा ।
इस प्रशिक्षण के दूसरे वक्ता श्री० एस० के० चौहान (डायरेक्टर ऑफ़ अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूट) ने कहा की परम्परागत रूप से हम आलू की खेती करते है, लेकिन हमें अच्छे उन्नति के लिए वैज्ञानिक तरीके से खेती करने की आवश्यकता है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन प्रोफेसर ध्यानेंद्र कुमार ने कहा ।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजक, प्रोफेसर ध्यानेंद्र कुमार, अध्यक्ष माटी ने बताया कि इस वैश्विक संकट काल कोविड-19 के इस कठिन समय में आलू की खेती आजीविका का बेहतर अवसर कैसे हो सकती है। उन्होंने बताया कि अगर हम अपनी पारम्परिक फसल जैसे आलू को भी उचित वैज्ञानिक तकनीकों के द्वारा उगाएं तो उसकी गुणवत्ता और मूल्य में सुधार कर अपनी आय को बढ़ा सकतें हैं।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ० जनार्दन ने कहा ।
इस एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ० जनार्दन जी (पूर्व निदेशक व् कृषि वैज्ञानिक, नेशनल रिसर्च सेण्टर फॉर मखाना, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्) ने आलू की वैज्ञानिक खेती पर एक बहुत ही विस्तृत और प्रासंगिक जानकारियों से अवगत करवाया। उन्होंने बताया कि आलू दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है,जिसका उपयोग विश्व में खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है और उन्होंने यह भी बताया की आलू कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च और विटामिन का बहुत बड़ा स्रोत है, यह एक किफायती व् उच्च उत्पादक क्षमता वाली फसल है, जिसका उपयोग सब्जी के रूप में, चिप्स बनाने के लिए किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि आलू की खेती शुरुआती बसंत में और गर्म सर्दियों में लगाया जाता है, और सबसे ठंडे महीनों में भी इसकी पैदावार होती है। उन्होंने आलू की खेती के विभिन्न चरणों जैसे आलू का उत्पादन, कीटों और बीमारियों, मिट्टी और भूमि की तैयारी के बारे में भी विस्तृत विवरण दिया। आलू की फसल आमतौर पर बीज से नहीं बल्कि “आलू के छोटे कंद” से उगाई जाती है। कंद के टुकड़ों को 5 से 10 सेमी की गहराई तक बोया जाता है। अच्छे फसल के लिए स्वस्थ बीज कंदों तथा अच्छे किस्म (कुफरी लालिमा ,कुफरी चंद्रमुखी इत्यादि) की आवश्यकता होती है अथवा बीज का किस्म बुआई की जाने वाली क्षेत्र पर निर्भर करता है और कंद बीज रोग रहित तथा अच्छी तरह से अंकुरित होना चाहिए और प्रत्येक बीज कंद का वजन में 30 से 40 ग्राम तक होना चाहिए। डॉ जनार्दन जी ने कहा कि पारंपरिक और वैज्ञानिक ज्ञान के संयोजन से आलू का उत्पादन को बढ़या जा सकता है, जिससे किसानो के लिए आमदनी का एक अच्छा स्त्रोत बन सकता है।
डॉ. हिमानी बडोनी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया ।
कार्यक्रम अंत में डॉ. हिमानी बडोनी (प्रोजेक्ट साइंटिस्ट) द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। उन्होंने प्रो० ध्यानेंद्र कुमार (अध्यक्ष, माटी), प्रो० विजय लक्ष्मी सक्सेना (अध्यक्ष, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन कोलकाता), मुख्य वक्ता डॉ० जनार्दन जी (कृषि वैज्ञानिक), श्री अनिल सैनी (चेयरमैन अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट), श्रीमती भावना सैनी (मैनेजिंग डायरेक्टर अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट), श्री एस के चौहान (डायरेक्टर अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट), श्री उत्तम कुमार सिंह (अकादमिक कोऑर्डिनेटर अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट) को इस एक दिवसीय प्रशिक्षण वेबिनार में भाग लेने और इसे सफल बनाने के लिए धन्यवाद ज्ञपित किया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में माटी टीम ने सक्रिय भूमिका निभाई ।
इस एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम को जोखन शर्मा व ओंद्रिला सान्याल के द्वारा समन्वित किया गया और डॉ० हिमानी बडोनी ने मंच का संचालन किया। कार्यक्रम समन्वयक ओंद्रिला सान्याल ने बताया की इस एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान देश भर से कुल 150 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमे से अधिकांश कॉलेज, विश्वविद्यालयों के छात्र – छात्राओं, ग्रामीण युवा किसान मुख्य रूप से शामिल रहे। साथ ही कार्यक्रम के दौरान माटी टीम के सभी सदस्य प्रतिक्षा, अनुप्रिया, शेफाली, मृत्युंजय, विशाल, रश्मि, शालिनी, दिशांषी भी उपस्थित रहे ।