जैसे-जैसे दुनियाभर के तमाम देश कोविड महामारी के मद्देनजर आर्थिक सुधार की योजनाएं बना रहे हैं, वैसे ही जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की दिशा में कार्बन उत्सर्जन कम करने पर भी कार्य कर रहे हैं। भारत भी इनमें से एक है, जिसका लक्ष्य साल 2024 तक $5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के साथ-साथ जलवायु अनुकूल लचीले विकास क्षेत्रों के निर्माण को प्राथमिकता देना है। इस दिशा में केंद्र सरकार ”ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर” पर ध्यान केंद्रित कर कार्य में जुटी हुई है ताकि इस निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति की जा सके। आइए अब जानते हैं देश में इस दिशा में क्या बड़े कदम उठाए गए…
ग्रीन हाइवे मिशन का गठन
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के मार्गदर्शन में आज देश में हरित राजमार्गों (ग्रीन हाइवे) का निर्माण किया जा रहा है। ये राजमार्ग ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, कार्बन फुटप्रिंट और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में काम करते हैं। दरअसल, देश को विकास करने की आवश्यकता के साथ-साथ पारिस्थितिकी और पर्यावरण को भी बनाए रखने की भी जरूरत है। इसे समझते हुए ही केंद्र सरकार ने एक ”ग्रीन हाइवे मिशन” का गठन किया।
ग्रीन हाइवे पॉलिसी
सितंबर 2015 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने ‘हरित राजमार्ग नीति’ यानि ”ग्रीन हाइवे पॉलिसी” की घोषणा की थी और इसी का अनुसरण करते हुए नेशनल ग्रीन हाइवेज मिशन की शुरुआत हुई। इस परियोजना का उद्देश्य चयनित राज्यों में सुरक्षित और हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारों का विस्तार करना है। इसका उद्देश्य निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करना और लॉजिस्टिक्स खर्चे को कम करना है। गौरतलब हो, राष्ट्रीय वन नीति में यह परिकल्पना की गई है कि भौगोलिक क्षेत्र का 33 प्रतिशत हिस्सा वन या वृक्षों से आच्छादित होना चाहिए, लेकिन अधिसूचित वन क्षेत्र केवल 22 प्रतिशत ही है। नई हरित राजमार्ग नीति-2015 के क्रियान्वयन से इस अंतर को पाटने में काफी मदद मिल रही है।
राष्ट्रीय हरित राजमार्ग मिशन मोबाइल एप
राष्ट्रीय हरित राजमार्ग मिशन मोबाइल एप भी केंद्र सरकार की परियोजनाओं को मजबूती देने का कार्य कर रहा है। मोबाइल एप्लिकेशन प्रबंधन को फील्ड से रीयल टाइम डेटा के साथ सभी परियोजनाओं की निगरानी करने में सक्षम बनाता है। इसके अलावा यह प्रौद्योगिकी बाधाओं को शीघ्रता से पहचानने में सहायता करता है और परियोजनाओं के त्वरित और सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है।
22 ग्रीन फील्ड कॉरिडोर किए जा रहा विकसित
केंद्र सरकार द्वारा 22 ग्रीन फील्ड कॉरिडोर भी विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें, 5 एक्सप्रेस हाइवे और 17 एक्सेस कंट्रोल हाइवे शामिल हैं। 8,000 किलोमीटर लंबे इन 22 ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स पर अनुमानित 3.26 लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे। इन 22 एक्सप्रेस-वे को 2025 तक पूरा करने की बात कही गई है। इनमें से तीन एक्सप्रेस-वे व ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे को पूरा करने की डेडलाइन साल 2022 रखी गई है। इनमें दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे, ट्रांस-राजस्थान, यानि राजस्थान के अंदर, ट्रांस-हरियाणा, यानि हरियाणा पर सबसे पहले काम होगा। इसके अलावा सड़क संपर्क को बढ़ाने की दिशा में, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, एनएचडीपी योजना, भारतमाला, पीएमजीएसवाई, सेतु भारतम और सागरमाला परियोजना के अंतर्गत महत्वपूर्ण रूप से काम किया जा रहा है। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे दोनों शहरों के बीच वर्तमान समय में लगने वाले लगभग चार घंटे के यात्रा वाले समय को घटाकर सिर्फ 45 मिनट कर देगा। वहीं दिल्ली और देहरादून के बीच यात्रा का समय भी मौजूदा 6-7 घंटे से कम होकर सिर्फ 2 घंटे का ही रह जाएगा। वहीं बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की चार धाम यात्रा के लिए, ऑल सीजन रोड प्रक्रिया को पूरी करने की दिशा में भी प्रयास जारी हैं। इनसे उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे
दरअसल, ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे वो एक्सप्रेस-वे होते हैं जो हरे-भरे इलाकों से निकाले जाते हैं। इन्हें ग्रीन कॉरिडोर भी कहा जाता है। इनको बनाने के पीछे के कारणों को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि इनके माध्यम से आबादी वाले इलाकों से बचने की कोशिश की गई है, इसके साथ जमीन सस्ते में मिल सके, साथ ही उन पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए ऐसा एक्सप्रेस-वे नए आर्थिक अवसर पैदा करेगा।
कब की गई ग्रीन कॉरिडोर की पहचान
जुलाई 2018 में केंद्र सरकार ने ऐसे 5 इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की पहचान की, जिन्हें ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा सकता है। इसके लिए ट्रैफिक मूवमेंट को स्टडी किया गया और साथ ही यह देखा गया कि इंडस्ट्रियल सेंटर में बनने वाले सामान को कंजम्पशन सेंटर और पोर्ट्स तक ले जाने की सुविधा बढ़ाई जा सके। यानि व्यापार करने में सहूलियत बढ़ाई जा सके।
पौधरोपण की व्यवस्था
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस विषय में कहा था कि पौधरोपण के उद्देश्य से देश को प्रति वर्ष 1,000 करोड़ रुपए उपलब्ध होंगे। इस नीति से ग्रामीण क्षेत्रों के करीब पांच लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। इसरो के भुवन और गगन उपग्रह प्रणालियों का उपयोग करके मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित किए जाने की भी योजना है। लगाए गए हर पेड़ की गिनती और ऑडिटिंग की व्यवस्था भी की गई है। इसके अंतर्गत न केवल लगाए गए पेड़ों पर जोर दिया जाता है, बल्कि इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि उनमें से कितने जीवित हैं। यह स्थानीय समुदायों के लिए भी उपयोगी हैं। इसके साथ ही इस दिशा में प्रोत्साहन के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाली एजेंसियों को पुरस्कृत किया जाएगा। नीति के सुचारू क्रियान्वयन के लिए लोगों से सुझाव मांगे जाएंगे। केंद्र की इस योजना के अनुरूप कई राज्य सरकारों से भी इसी तर्ज पर कार्यक्रम शुरू करने को कहा गया है। 1,200 सड़क किनारे सुविधाएं भी स्थापित की जाएंगी। हरित राजमार्ग नीति भारत को प्रदूषण मुक्त बनाने में मदद करेगी। यह भारत में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने में भी मदद करेगी। नीति का दृष्टिकोण स्थानीय लोगों और समुदायों को सम्मानजनक रोजगार प्रदान करना है।
ग्रीन फंड कॉर्पस रखना अनिवार्य
ग्रीन हाइवे प्रोजेक्ट के तहत, सरकार ने किसी भी एनएच अनुबंध की कुल परियोजना लागत का 1 प्रतिशत ग्रीन फंड कॉर्पस के लिए अलग रखना अनिवार्य कर दिया है जिसका उपयोग पौधरोपण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। पौधरोपण से सालाना लगभग 12 लाख मिलियन टन कार्बन के संचयन में मदद मिलने की उम्मीद है।
‘वेस्ट टू वेल्थ और वेस्ट टू एनर्जी’
‘वेस्ट टू वेल्थ और वेस्ट टू एनर्जी’ पर्यावरण को बचाए रखने के लिए महत्वपूर्ण समाधानों में से एक है। केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक परिवहन को बिजली आधारित व्यवस्था में तब्दील करने की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है। अप्रैल, 2020 से लेकर अब तक, 34 किलोमीटर प्रतिदिन की दर से 12,205 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण करने की उल्लेखनीय सफलता हासिल की जा चुकी है।
हरित राजमार्ग नीति की विशेषताएं…
-किसानों, निजी क्षेत्र और वन विभाग सहित सरकारी संस्थानों की भागीदारी के साथ देश भर में पर्यावरण के अनुकूल राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारों को हरित और विकास को बढ़ावा देना
-यह उन मुद्दों को संबोधित करेगा जो विकास की राह में हैं और सतत विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे
-राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे पेड़ और झाड़ियां लगाकर वायु प्रदूषण और धूल के प्रभाव को कम करना। वे वायु प्रदूषकों के लिए प्राकृतिक सिंक के रूप में कार्य करेंगे और तटबंध ढलानों पर मिट्टी के कटाव को रोकेंगे।
-हाइवे को हरा-भरा करने का ठेका एनजीओ, एजेंसियों, निजी कंपनियों और सरकारी संगठनों को दिया जाएगा। ये हितधारक पेड़ों के अस्तित्व और स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होंगे
-किसी विशेष क्षेत्र में पौधरोपण मिट्टी की उपयुक्तता और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करेगा
-यह जीवित रहने, वृद्धि और पौधरोपण के आकार और उसके रखरखाव की जांच के लिए क्षेत्र सत्यापन के लिए साइट का दौरा करके निरंतर आधार पर पौधरोपण की स्थिति की निगरानी के लिए जिम्मेदार होगी।
-एजेंसी द्वारा वार्षिक आधार पर निष्पादन एजेंसियों की निष्पादन लेखापरीक्षा नियमित रूप से की जाएगी। एजेंसियों को उनके पिछले प्रदर्शन ऑडिट के आधार पर नए अनुबंध दिए जाएंगे।
–नीति राजमार्गों के विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाएगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के 5 लाख लोगों को रोजगार देने में भी मदद मिलेगी।