भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ”तिरंगा” पूरी दुनिया में देशभक्ति और भारतीयता की पहचान बनकर दुनिया के जिस कोने में भी लहराता है, इसे देखकर देशभक्ति की भावना मन हिलोरे मारने लगती है। बता दें आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हर भारतवासी को तिरंगे से जोड़ने के लिए हर घर तिरंगा अभियान का आगाज हुआ और अब बच्चा, बूढ़ा, जवान देश का हर नागरिक इस तिरंगे को हाथ में थाम कर इस अभियान का हिस्सा बन रहा है। अगर आपको भी इस अभियान से जुड़ना है तो यह लेख अभियान की तमाम जानकारियों समेत उन रोचक जानकारियों से रूबरू कराने में बेहद कारगर है जिनसे आपको भारत के राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलेगा।
13 से 15 अगस्त तक देश में हर-घर तिरंगा अभियान
उल्लेखनीय है कि 13 से 15 अगस्त तक देश में हर-घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। पीएम मोदी के आह्वान के बाद क्या दिल्ली, क्या बनारस और क्या जम्मू कश्मीर, हर तरफ से इस आयोजन को सफल बनाने के लिए लोग जगह-जगह निकाली जा रही तिरंगा यात्राओं में शामिल हो रहे हैं।
आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर चलाया जा रहा ”हर घर तिरंगा” कार्यक्रम
दरअसल, आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर इस साल स्वतंत्रता दिवस से पहले केंद्र सरकार द्वारा ”हर घर तिरंगा” कार्यक्रम की घोषणा की गई है। यह कार्यक्रम पीएम मोदी द्वारा घोषित ”अमृत महोत्सव” का हिस्सा है। इसके तहत प्रधानमंत्री ने न केवल घर की छत पर झंडा फहराने का अनुरोध किया, बल्कि फेसबुक, ट्विटर समेत सोशल मीडिया प्रोफाइल पर भी राष्ट्रीय ध्वज लगाने के लिए कहा। बताया गया है कि ”हर घर तिरंगा” कार्यक्रम 13 अगस्त से 15 अगस्त तक चलेगा।
कई परिवर्तन के दौर से गुजरा हमारा तिरंगा
क्या आप जानते हैं कि हमारा ”तिरंगा” झंडा कई परिवर्तन के दौर से गुजरा है। जी हां, अपनी आजादी की लड़ाई में भारत के कई महान क्रांतिकारियों ने अलग-अलग रंग-रूप के झंडे तले क्रांति की। इनके रंग-रूप, चाहे अनेक रहे हो, लेकिन सभी जन एक थे और उनका उद्देश्य भी एक था और वो था ”भारत की आजादी”… ऐसे में आइए इतिहास को उन पन्नों को पलटकर जानते हैं भारतीय ध्वज के परिवर्तन की कहानी….
इतिहास में दर्ज राष्ट्रीय ध्वज की अमर कहानी:
– आजादी से पूर्व राष्ट्रीय ध्वज शुरुआत में कई परिवर्तनों से होकर गुजरा है। स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान कई अलग-अलग ध्वज का प्रयोग किया गया या मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा।
– प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (कोलकाता) में फहराया गया था। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। पीली पट्टी पर कमल बना हुआ था।
– वर्ष 1906 में डिजाइन किए गए राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंगों का समावेश किया गया था, जिसके बीच में वंदे मातरम् लिखा था। इस ध्वज में तारों के साथ ही चांद और सूरज की आकृतियां भी दर्शाई गई थी। बाद में इसमें थोड़ा परिवर्तन कर तारों को कमल के फूल से बदल दिया गया। श्याम जी कृष्ण वर्मा, मैडम भीकाजी कामा, तथा वीर सावरकर ने वर्ष 1907 में राष्ट्रीय ध्वज का नया संस्करण तैयार किया जिसमें डिजाइन के साथ रंगों में भी बदलाव किया गया था।
– तीसरा ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनीतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया।
– इसके बाद कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वेंकैया ने एक झंडा बनाया। यह दो रंगों लाल और हरा रंग, जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
– 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष रहा। तिरंगे ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया । यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में चलते हुए चरखे के साथ था। यह स्पष्ट रूप से बताया गया कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी।
– 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया।
– वर्तमान में भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है, जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी हरियाली, उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।