देश के 49वें CJI होंगे यू.यू. ललित

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न्यायाधीश उदय उमेश ललित जिन्हें जस्टिस यू.यू. ललित के नाम से भी जाना जाता है, भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। बुधवार को देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के तौर पर उनके नाम की औपचारिक घोषणा की गई। अब ललित के रूप में देश को 49वां CJI मिलेगा। इसी के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी उनकी नियुक्ति पर मुहर लगा दी है।

जस्टिस रमना ने की जस्टिस उदय उमेश ललित के नाम की सिफारिश

दरअसल, हाल ही में मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने जस्टिस उदय उमेश ललित के नाम की सिफारिश उनके उत्तराधिकारी के तौर पर की थी। इससे पहले विधि मंत्रालय ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने का आग्रह किया था।

जवाब में चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने 4 जुलाई को अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस यू.यू. ललित के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी। जस्टिस रमना 26 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं। उनके बाद यू.यू. ललित चीफ जस्टिस के रूप में 27 अगस्त को शपथ लेंगे और उनका कार्यकाल 8 नवंबर तक होगा। वह इस समय सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज हैं।

CJI की नियुक्ति को लेकर क्या रही है परंपरा ?

तय परंपरा के मुताबिक तत्कालीन सीजेआई को अपने उत्तराधिकारी के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के ही सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करनी होती है। जस्टिस उदय उमेश ललित वरिष्ठता क्रम में जस्टिस रमना के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं।

कितने दिन का कार्यकाल ?

27 अगस्त को शपथ लेने के पश्चात जस्टिस उदय उमेश ललित का कार्यकाल 74 दिन का होगा। सीजेआई के रूप में ललित उस कॉलेजियम का नेतृत्व करेंगे, जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस नजीर और जस्टिस इंदिरा बनर्जी शामिल होंगे।

महाराष्ट्र में जन्मे थे जस्टिस यू.यू. ललित

न्यायमूर्ति ललित का जन्म 9 नवंबर, 1957 को महाराष्ट्र के सोलापुर हुआ था। न्यायमूर्ति ललित जून 1983 में महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकित हुए और तभी से उन्होंने वकालत शुरू की थी। 1985 तक बांबे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के बाद वे जनवरी 1986 में दिल्ली शिफ्ट हो गए। 2004 में वे कई मामलों में एमिकस क्यूरी के रूप में दिखाई दिए। अप्रैल 2004 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया गया। उन्हें 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था।

अपराध कानून में विशेषज्ञ हैं जस्टिस ललित

जस्टिस ललित क्रिमिनल लॉ में विशेषज्ञ हैं। लगातार दो कार्यकाल तक उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय की कानूनी सेवा समिति के सदस्य के रूप में काम किया है। यही कारण रहा कि एक समय उनकी इसी खूबी को देखते हुए उन्हें सीबीआई का विशेष लोक अभियोजक भी नियुक्त किया गया।

वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट जज बने थे

जस्टिस यू.यू. ललित ऐसे दूसरे चीफ जस्टिस होंगे जो सर्वोच्च न्यायालय का जज बनने से पहले किसी हाई कोर्ट में जज नहीं थे। वे सीधे वकील से इस पद पर पहुंचे थे। उनसे पहले 1971 में देश के 13वें मुख्य न्यायाधीश एस. एम. सीकरी ने यह उपलब्धि हासिल की थी।

तीन तलाक से लेकर पॉक्सो तक दे चुके हैं अहम फैसले

जस्टिस ललित ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण तीन तलाक, केरल में पद्मनाभस्वामी मंदिर पर त्रावणकोर शाही परिवार का दावा और पॉक्सो से जुड़े कानून पर उन्होंने महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।

चार ऐतिहासिक मामले:

ट्रिपल तालक: पांच-न्यायाधीशों के संविधान द्वारा अगस्त 2017 का निर्णय पथ-प्रदर्शक निर्णयों में से एक था जिस पीठ ने 3-2 के बहुमत से तत्काल ‘तीन तलाक’ के माध्यम से तलाक की प्रथा को “शून्य” यानि “अवैध” और “असंवैधानिक” करार दिया था।

त्रावणकोर शाही परिवार: एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में न्यायमूर्ति ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था। दरअसल, जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने त्रावणकोर के तत्कालीन शाही परिवार को केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार दिया था। यह सबसे अमीर मंदिरों में से एक है।

पॉक्सो: जस्टिस ललित की पीठ ने ही ‘स्किन टू स्किन टच’ पर फैसला दिया था। न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था कि बच्चे के शरीर के यौन अंगों को छूना या कोई कृत्य करना, ‘यौन इरादे’ के साथ शारीरिक संपर्क में शामिल होना ‘यौन हमले’ के तहत संरक्षण की धारा 7 के तहत ‘यौन हमला’ ही माना जाएगा। POCSO अधिनियम सबसे महत्वपूर्ण घटक के रूप सामने आया।

2जी स्पेक्ट्रम घोटाला: 2जी मामले में उन्हें सुनवाई करने के लिए उन्हें सीबीआई का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था। स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में यू.यू. ललित को बार द्वारा एक वकील के रूप में नामांकित किया गया था।

उन्होंने अक्टूबर 1986 से 1992 तक श्री सोली जे. सोराबजी के चेंबर में काम किया और उस वक्त वे वकीलों के पैनल में थे। इस अवधि के दौरान भारत संघ के लिए श्री सोली जे. सोराबजी भारत के लिए एटॉमी जनरल थे। 1992 से 2002 तक उन्होंने एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के रूप में अभ्यास किया और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।

इसके अलावा उन्हें वन मामलों, वाहनों के प्रदूषण सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों में एमिकस क्यूरी भी नियुक्त किया गया था। यमुना प्रदूषण मामले में उन्हें सुप्रीम के आदेश के तहत सीबीआई के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था।

जस्टिस ललित उस पीठ में भी थे, जिसने कहा था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-13 बी (2) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए निर्धारित छह महीने की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य नहीं है। हाल ही में जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को अदालत की अवमानना के आरोप में चार महीने के कारावास और 2000 रुपए के जुर्माने की सजा भी सुनाई थी।

जस्टिस ललित के बारे में जानने योग्य बातें

जस्टिस ललित को बार से अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। जस्टिस एस.एम. सीकरी के बाद बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने वाले वे दूसरे CJI होंगे। न्यायमूर्ति ललित ने दो कार्यकालों के लिए सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के सदस्य के रूप में भी कार्य किया है। न्यायमूर्ति ललित आठ नवंबर को रिटायर होंगे।

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