सात साल में कितना आगे बढ़ा आयुर्वेद,पढ़े विशेष रिपोर्ट

National News

”हमारे ग्रंथों में आयुर्वेद का शानदार वर्णन करते हुए कहा गया है: हिता-हितम् सुखम् दुखम्, आयुः तस्य हिता-हितम्। मानम् च तच्च यत्र उक्तम्, आयुर्वेद स उच्यते।। यानी आयुर्वेद कई पहलुओं का ध्यान रखता है। यह स्वास्थ्य एवं दीर्घायु को सुनिश्चित करता है। आयुर्वेद को एक समग्र मानव विज्ञान के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पौधों से लेकर आपकी थाली तक, शारीरिक ताकत से लेकर मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य तक आयुर्वेद एवं पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का प्रभाव अपार है।” पीएम मोदी के इन्हीं कथनों को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धति यानि ‘आयुर्वेद’ को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इनके बारे में…

कई नए स्टार्ट-अप आए सामने

इस दिशा में पिछले सात साल में देश में आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार पर बहुत ध्यान दिया गया है। इसके लिए केंद्र सरकार ने कई कार्यक्रमों और जनजागरण अभियानों के माध्यम से देशवासियों में आयुर्वेद के प्रति नई चेतना जागृत की। बाकी की बची हुई कसर अब आयुर्वेद के क्षेत्र में उतरे कई नए स्टार्ट-अप्स पूरी कर रहे हैं। देश की जनता सरकार और इन नए स्टार्टअप का सहारा पाकर बेहद खुश है। यही नए स्टार्ट-अप्स आत्मनिर्भर भारत के दीर्घकालिक दृष्टिकोण को आगे लेकर जाएंगे। 2014-2020 की अवधि में प्लांट डेरिवेटिव्स में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई, इसके बाद न्यूट्रास्यूटिकल्स (20.5 प्रतिशत), फार्मास्यूटिकल्स (15.8 प्रतिशत), प्लांट एक्सट्रैक्ट्स 14.7 प्रतिशत और हर्बल प्लांट्स (14.3 प्रतिशत) का स्थान रहा।

आयुष विस्तार के लिए 3,050 करोड़ रुपए

गौरतलब हो, इस बार केंद्र सरकार ने देश में आयुष विस्तार के लिए कुल 3,050 करोड़ रुपए का बजट रखा है। वहीं किफायती सेवाओं के लिए 800 करोड़ रुपए और दिए जाएंगे। पिछले वित्तीय वर्ष के लिए यह करीब 2,660 करोड़ था। यानि सात साल में बजट में चार गुना बढ़ोतरी की गई है। साफ है कि केंद्र सरकार अब आयुर्वेद के क्षेत्र में भारत को पीछे नहीं छूटने देना चाहती और विरासत में मिली इस धरोहर को संजो कर रखना चाहती है। इस बार के बजट से शोधार्थियों के शोध कार्यों का भी विस्तार होगा। इससे नई औषधियों की खोज, उसका सर्वेक्षण, उसके रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। इसके तहत औषधीय पादप अनुसंधान, चिकित्सा-नृजातीय वानस्पतिक सर्वेक्षण, औषधीय मानकीकरण और अनुसंधान के रिसर्च के पब्लिकेशन को नई दिशा मिलेगी।

कोविड काल में आयुर्वेद बना संजीवनी

कोविड काल में आयुर्वेद ने पूरे विश्व के लिए संजीवनी का काम किया। आयुष दवाओं ने डेढ़ साल में कोविड महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान दुनियाभर में कोविड रोगियों को तेजी से ठीक होने में मदद करने में बहुत बेहतरीन काम किया। आपको याद होगा कोविड संकट के दौरान जब तक देश में वैक्सीन का निर्माण नहीं हुआ था तब इन्हीं आयुष दवाओं और औषधियों के सेवन से ही लोगों को राहत मिल रही थी। इस कड़ी में आयुष मंत्रालय द्वारा समय-समय पर लोगों को कोविड से बचाव के उपाय सुझाए गए। इनमें जनरल उपायों में लोग लगातार गर्म पानी पीने, योग प्राणायाम करने और खाने में हल्दी, जीरा, धनिया, लहसुन इत्यादि का इस्तेमाल खाना बनाने में कर रहे थे। वहीं इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए लोग च्यवनप्राश, हर्बल टी, काढ़ा और गोल्डन मिल्क यानि हल्दी वाला दूध का सेवन कर रहे थे। ये तमाम उपाय पूरी दुनिया ने अपनाए थे।

कोविड काल में ही आयुष बाजार में आया अचानक उछाल

कोविड के समय पर ही आयुष बाजार में अचानक एक तेज उछाल देखने को मिला था। उस वक्त आयुष का बाजार आकार 2014-20 में 17 प्रतिशत बढ़कर 18.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंचा था। वहीं वैश्विक हिस्सेदारी के लिहाज से दुनिया की तुलना में भारत का आयुष बाजार ज्यादा तेजी से आगे बढ़ा था। वर्तमान में विश्व बाजार में आयुष के क्षेत्र में अकेले भारत की बड़ी हिस्सेदारी है।

आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में केंद्र सरकार का रहा खासा जोर

कोविड काल में केंद्र सरकार ने आयुर्वेद से उपचार की तमाम प्राचीन विधियों से देशवासियों को रूबरू कराया और आयुर्वेदिक औषधियों के इस्तेमाल के गुण लोगों को बताए। हमें सरकार के विभिन्न प्रयासों से मिले फायदे का शुक्रगुजार होना चाहिए। वाकयी इससे देश की जनता को जो लाभ प्राप्त हुआ वह अकल्पनीय है। आयुर्वेद के जरिए लोगों ने घर पर रहते हुए अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के तरीकों को अपनाया। केवल इतना ही नहीं देशवासियों के अलावा पूरी दुनिया को आयुर्वेद के गुण समझ आने लगे हैं तभी आज दुनिया के तमाम देश आयुर्वेद की ओर रुख कर रहे हैं। आज दुनिया में आयुष की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
अभी हाल ही में पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम की 86वीं कड़ी में आयुर्वेद की चमत्कारिक महत्ता को लेकर बताया कि केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री राइला ओडिंगा का जिक्र किया और कहा कि उनकी बेटी रोज मेरी को ब्रेन ट्यूमर हो गया था और इस वजह से उन्हें अपनी बेटी की सर्जरी करनी पड़ी लेकिन उसका एक दुष्परिणाम ये हुआ कि रोज मेरी की आंखों की रोशनी करीब चली गई और उसे दिखाई देना बंद हो गया। उन्होंने दुनियाभर के कई देशों के अस्पतालों में इलाज की भरपूर कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली तो घर में निराशा का वातावरण बन गया। उसके बाद केन्या के प्रधानमंत्री को भारत आकर आयुर्वेद के इलाज का सुझाव दिया गया। बेटी के लिए वे केरल के आयुर्वेदिक अस्पताल आ गए। काफी समय तक उनकी बेटी यहां रही और फिर आयुर्वेद के इलाज का असर हुआ और रोज की आंखों की रोशनी काफी हद तक वापस लौट आई।

देश के ये संस्थान भी दे रहे आयुर्वेद का बढ़ावा

आयुर्वेद के क्षेत्र में नए स्टार्ट-अप तो आ ही रहे हैं साथ ही देश में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन और नेशनल टेली मेडिसिन के क्षेत्र में भी कई पहल की जा चुकी है। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA) की कल्पना आयुर्वेद के शीर्ष संस्थान के रूप में की गई है। यह आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। इसका उद्देश्य आयुर्वेद के पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी के बीच तालमेल लाना है। संस्थान में 8 अंतर-अनुशासनात्मक अनुसंधान प्रयोगशालाओं के साथ 25 विशेष विभाग और 12 क्लीनिक हैं। इस संस्थान का आयुर्वेद में वैश्विक प्रचार और अनुसंधान के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सहयोगी केंद्र भी है। इनसे भी आयुर्वेद को बढ़ावा देने की मुहीम की गति को और तेज करने में केंद्र सरकार को काफी मदद मिली है। वहीं ‘स्टार्टअप इंडिया’ के साथ साझेदारी के माध्यम से अब अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) आयुष क्षेत्रों में काम कर रहे नवाचारों और स्टार्टअप की पहचान करना और उनका समर्थन करना चाहता है और नई प्रौद्योगिकियों की शक्ति का उपयोग करना चाहता है।

डब्ल्यू.एच.ओ. ग्लोबल सेंटर भी निभाएगा बड़ी भूमिका

इसी क्रम में डब्ल्यूएचओ भारत में अपना एकमात्र ग्लोबल सेंटर ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन शुरू करने जा रहा है। यह पारंपरिक चिकित्सा के लिए विश्व का पहला और एकमात्र डब्ल्यू.एच.ओ. ग्लोबल सेंटर होगा। इसका सीधा असर देश में पारंपरिक औषधि सेक्टर के निवेश में देखने को मिलेगा। केंद्रीय बजट में इस सेंटर के लिए भी पर्याप्त बजट का प्राविधान किया गया है। अब हम सभी पर निर्भर है कि हम अपने लिए और दुनिया के लिए भी आयुष के बेहतर समाधान कैसे तैयार करें।

डिजिटल माध्यम पर बढ़ती लोकप्रियता

डिजिटल माध्यम पर बढ़ती लोकप्रियता और निर्भरता के साथ डिजी-इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को ध्यान में रखते हुए भी आयुष मंत्रालय लगातार तेजी से काम कर रहा है। ऐसे में बजट में किए गए विभिन्न प्रावधान के तहत आने वाले दिनों में आयुष-ग्रिड के तहत पूरे आयुष क्षेत्र को डिजिटल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम देखने को मिलेगा। यह आयुष क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा क्रांतिकारी कदम भी साबित हो सकता है।

राष्ट्रीय आयुष मिशन

राष्ट्रीय आयुष मिशन 15 सितंबर 2014 को शुरू किया गया था। केंद्र प्रायोजित योजना, राष्ट्रीय आयुष मिशन को आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सस्ती आयुष सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से लागू किया जा रहा है। इसका उद्देश्य आयुष अस्पतालों और औषधालयों के उन्नयन के माध्यम से व्यापक पहुंच के साथ, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और जिला अस्पतालों (डीएच) में आयुष सुविधाओं को एक साथ मुहैया करना, आयुष शैक्षणिक संस्थानों के उन्नयन के माध्यम से राज्य स्तर पर संस्थागत क्षमता को मजबूत करना, 50 बिस्तरों वाले एकीकृत आयुष अस्पताल की स्थापना, आयुष सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और 12,500 आयुष स्वास्थ्य एवं वेलनेस सेंटर का संचालन करना है। इनके पीछे मकसद आयुष सिद्धांतों और प्रथाओं के आधार पर एक समग्र वेलनेस मॉडल की सेवाएं प्रदान करना है ताकि रोग के बोझ को कम कर और जेब पर पड़ने वाले खर्च को कम करके “स्व-देखभाल” के लिए जनता को सशक्त बनाया जा सके।

आयुष मिशन (एनएएम) को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में 01 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2026 तक 4607.30 करोड़ रुपए के वित्तीय व्यय के साथ जारी रखने को मंजूरी मिल चुकी है। बताना चाहेंगे कि भारत के पास आयुर्वेद, सिद्ध, सोवा-रिग्पा, यूनानी और साथ ही होम्योपैथी (एएसयू एंड एच) जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक अद्वितीय विरासत है जो निवारक, प्रोत्साहक और उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवा के लिए ज्ञान का खजाना है।
भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की विशेषताएं यानि उनकी विविधता एवं लचीलापन, सुगम्यता, वहन योग्य, आम जनता के एक बड़े वर्ग द्वारा व्यापक स्वीकृति, तुलनात्मक रूप से कम लागत और बढ़ते आर्थिक मूल्य, उन्हें वैसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बनने की क्षमताओं से भरती हैं जिनकी हमारे एक बड़े वर्ग को जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *