राज्यपाल 9वें अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में सम्मिलित हुए

UTTARAKHAND NEWS

आज राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि)   कुरुक्षेत्र, हरियाणा में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय एवं कुरुक्षेत्र विकास मंडल द्वारा आयोजित 9वें अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर केरल के राज्यपाल  आरिफ मोहम्मद खान एवं हरियाणा के राज्यपाल  बंडारू दत्तात्रेय भी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि गीता की इस पावन धरती पर आकर दिव्यता, भव्यता और पूर्णता की अनुभूति हो रही है। उन्होंने हरियाणा सरकार द्वारा आयोजित 18 दिन के अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के आयोजन के लिए बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से गीता के उपदेश विश्वभर में पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि गीता धार्मिक, नैतिक और जीवन दर्शन का अद्भुत ग्रन्थ है। राज्यपाल ने कहा कि विश्व की बड़ी से बड़ी समस्या हो या हमारे मन की कोई शंका या जिज्ञासा, इन सभी का समाधान गीता में समाहित है।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गीता को पूरे विश्व की धरोहर बताया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने इस बात को सिद्ध किया है कि यदि गीता को अपना मार्गदर्शक बनाया जाए तो सबका साथ सबका विकास के भाव से, समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि कुरुक्षेत्र की यह धरती हमें याद दिलाती है कि जब भी जीवन में संदेह और उत्कंठा की स्थिति हो, तब गीता ही है, जिसका ज्ञान हमें सही राह दिखा सकता है। गीता केवल एक ग्रन्थ नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण जीवन का सार है। यह ग्रंथ समस्त मानव जाति को कर्म, धर्म और जीवन के कर्तव्यों का बोध कराते हुए सही राह पर चलने की सीख देता है।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि ‘‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’’ गीता का यह संदेश हमें बताता है कि हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं, लेकिन फल की चिंता किए बिना अपने धर्म का पालन करें। ये विचार हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के साथ ही समाज और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता का सार यह है कि जीवन में मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करते रहना चाहिए, यानी कर्म करते समय फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

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