इतिहास के हर कालखंड में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का शिल्पांकन

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देशभर में होलिका दहन मनाई जा रही है। होली के पर्व में होलिका दहन का विशेष महत्त्व है। होलिका दहन का जिक्र होते ही विष्णु-भक्त प्रह्लाद की पौराणिक कथा हमारे सामने आ खड़ी होती है। मान्यताओं के अनुसार, अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु – भक्ति से अप्रसन्न हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के लिए अनेक षड्यंत्र रचे, किंतु वो सभी में असफल रहा। अंत में अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए स्वयं भगवान विष्णु नरसिंह रूप में अवतार लेते हैं और अत्याचारी हिरण्यकश्यप का वध करते हैं। नरसिंह अवतार की लोक प्रचलित कथा से भारत की शिल्पकला भी अछूती नहीं रही। इतिहास के हर कालखंड में भगवान विष्णु के इस अवतार का शिल्पांकन मिलता है। आइए जानते हैं- भोपाल के संग्रहालयों में सुरक्षित नृसिंह रूप की कुछ प्रतिमाओं के बारे में :

1-नृसिंह (राज्य संग्रहालय)

मध्य प्रदेश के मुरैना के समीप पढावली नामक स्थान से प्राप्त 11वीं शताब्दी की यह प्रतिमा कच्छप घात शैली में निर्मित है। इस प्रतिमा में चार भुजाओं से सुसज्जित नृसिंह को अपनी निचली भुजाओं से हिरण्यकश्यप के पेट को फाड़ते हुए दिखाया गया है। ऊपर की एक भुजा शंख धारण किये हुए है। नृसिंह का मुंह खुला है, जीभ बाहर की ओर निकली हुई दिखाई गई है।

2-नृसिंह (राज्य संग्रहालय)

11वीं श.ई. की परमार काल की इस प्रतिमा का प्राप्ति स्थल मध्य प्रदेश के मंदसौर के समीप हिंगलाजगढ़ है। इस प्रतिमा में नृसिंह को हिरण्यकश्यप के साथ युद्ध करते हुए उत्कीर्ण किया गया है, जिसमें विष्णु के नृसिंह अवतार को हिरण्यकश्यप का वध कर अपने नाखूनों के द्वारा पेट फाड़कर उसकी आंतों को बाहर निकालते हुए शिल्पांकित किया गया है। प्रतिमा में नृसिंह व हिरण्यकश्यप का मुख खंडित है।

3-नृसिंह (बिड़ला संग्रहालय)

भोपाल के बिड़ला म्यूजियम में सुरक्षित इस प्रतिमा का प्राप्ति स्थल विराटनगर, शहडोल है। इस प्रतिमा में नृसिंह अवतार को द्विभंग मुद्रा में अपने घुटनों पर हिरण्यकश्यप को पददलित करके उसका पेट विदीर्ण करते हुए दिखाया गया है। भूरा बलुआ प्रस्तर पर निर्मित यह प्रतिमा कलचुरी काल की शिल्पकला का अनुपम उदाहरण है।

किताबों, कहानियों और घर के बड़ों के द्वारा इस तरह की पौराणिक कथाएं खूब सुनी होगी। लेकिन सदियों से ये मूर्तियां उन कथाओं को प्रमाणित करती हैं और होलिकी दहन को बुराई पर अच्छाई की विजय का गान करती हैं।

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