तुलसीदास ने जन-जन तक पहुंचाई रामकथा, इन देशों में मिलते हैं भगवान श्रीराम के प्रमाण

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श्रीराम को जन-जन का राम बना देने वाले गोस्वामी तुलसीदास की आज जयंती है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रचित ‘रामायण’ को आधार मानकर तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना सरल अवधी भाषा में की थी। अवधी खासकर उत्तर भारत में जनसाधारण की भाषा है, इसलिए सरल अवधी भाषा में होने के कारण रामचरित मानस अत्यधिक प्रसिद्ध हो गई। हम रामचरित मानस के जरिए ही देश और विदेश के उन स्थलों के बारे में जान पाए, जो हमारे प्राचीन ग्रंथ से संबंधित हैं, जैसे नेपाल में माता सीता का जन्म, श्रीलंका में रावण का निवास आदि। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व के कई ऐसे देश भी हैं, जो अपने देश को राम का देश और खुद को वंशज मानते हैं। यहां तक कि उन देशों में भी रामायण जैसे ग्रंथ हैं, जिसमें भगवान राम और माता सीता का उल्लेख है। इसका प्रमाण भी है…अब मॉरीशस में बना रामायण सेंटर ही देख लीजिए, या थाईलैंड का रामकियन, जो रामायण का ही स्वरूप है और रामकियन थाईलैंड की राष्ट्रीय पुस्तक भी है। इसी तरह इंडोनेशिया में रामायण को ‘काकाविन रामायण’ कहा जाता है। ऐसे में चलिए उन देशों के बारे में जानते हैं, जहां रामायण की कहानी अलग-अलग तरह से अपनी छाप छोड़ रही है।

भारतवर्ष का इतिहास सभ्यता से काफी पहले का है…ऐसे में विदेश में भारतीय संस्कृति और रामायण के इतिहास को लेकर कह सकते हैं कि भारतवासी जहां कहीं भी गये… वहां की सभ्यता और संस्कृति को तो उन लोगों ने प्रभावित किया ही, वहां के स्थानों के भी नाम बदलकर उनका भारतीयकरण कर दिया।

इंडोनेशिया

कहा जाता है कि इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण रामायण की सुमित्रा के नाम पर हुआ था। इसी तरह जावा, जो कि इंडोनेशिया गणराज्य में द्वीप है, वहां एक नदी का नाम सेरयू है और उसी क्षेत्र के पास स्थित एक गुफा का नाम किस्केंदा अर्थात् किष्किंधा है। ऐसे ही कई शहरों के नाम भी रामायण के उद्धृत नामों से संबंधित हैं। वैसे इंडोनेशिया में रामायणीय संस्कृति से संबद्ध इन स्थानों का नामकरण कब हुआ, यह कहना थोड़ा मुश्किल है,फिर भी गौर करने वाली बात ये है कि इस्लाम बहुल इस देश का प्रतीक चिन्ह गरुड़ निश्चय ही भारतीय संस्कृति से अपने सरोकार को उजागर करता है।

मॉरीशस

मॉरीशस की संसद ने सर्वसम्मति से 2001 में एक कानून बनाकर ‘रामायण सेंटर’ की स्थापना की, जो अब रामायण अध्ययन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन चुका है। मॉरीशस का रामायण सेंटर पहले तब चर्चा में आया था, जब यहां की संसद ने बाकायदा कानून बनाकर इस संस्थान के निर्माण को मंजूरी दी थी। यहां पांच से पंद्रह साल के बच्चों को हिंदू दर्शन और रामायण के जीवन मूल्यों की शिक्षा दी जाती है। यहां रामायण पर शोध के लिए संदर्भ ग्रंथों की एक विशाल लाइब्रेरी भी है। विश्व में रामायण के जितने संस्करण हैं, वे सब इस संस्थान में उपलब्ध हैं। इसके अलावा भी कई तरह के अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन करता है। मॉरीशस के समाज में रामायण की शिक्षाएं इतनी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं कि इसे वहां के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है।

म्यांमार (बर्मा)

बर्मा जिसे अब हम म्यांमार के नाम से जानते हैं… वहां का पोपा पर्वत ओषधियों के लिए विख्यात है। वहां के निवासियों को यह विश्वास है कि लक्ष्मण के उपचार हेतु पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान उखाड़कर ले गये थे। वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे। वापसी यात्रा में उनका संतुलन बिगड़ गया और वे पहाड़ के साथ जमीन पर गिर गये जिससे एक बहुत बड़ी झील बन गयी। इनवोंग नाम से विख्यात यह झील बर्मा के योमेथिन जिला में है।

थाईलैंड

थाईलैंड में रामायण को रामकियन कहा जाता है, जो कि यहां की राष्ट्रीय पुस्तक भी है। सिर्फ रामकिन ही नहीं शुरुआत में थाईलैंड की राजधानी को अयुत्या कहा जाता था, जिसका नाम अयोध्या की राजधानी के नाम पर रखा गया था। थाईलैंड में रामायण के अनुसार थाईलैंड के राजा खुद को श्री राम के वंशज मानते थे। इसलिए यहां के पहले शासक राम प्रथम के बाद चक्री वंश के सभी राजाओं द्वारा अभिषेक के समय राम की उपाधि धारण की जाती है। वर्तमान थाई सम्राट राम 10 हैं। इसके अलावा रामायण के विभिन्न नाटकीय संस्करण और रामायण पर आधारित नृत्य का आयोजन थाईलैंड और विभिन्न दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, कंबोडिया आदि में भी किया जाता है।

वियतनाम 

वियतनाम का प्राचीन नाम चंपा है। थाई वासियों की तरह वहां के लोग भी अपने देश को राम की भूमि मानते है। उनकी मान्यता की पुष्टि सातवीं शताब्दी के एक शिलालेख से होती है जिसमें आदिकवि वाल्मीकि के मंदिर का उल्लेख हुआ है जिसका पुनर्निर्माण प्रकाश धर्म नामक सम्राट ने करवाया था। यह शिलालेख अनूठा है, क्योंकि आदिकवि की जन्मभूमि भारत में भी उनके किसी प्राचीन मंदिर का अवशेष उपलब्ध नहीं है।

तो विश्व के कई हिस्सों में रामायण के अलग-अलग स्वरूप हैं, लेकिन भारत में तुलसीदास के रामचरितमानस  भारतीय समाज को भगवान श्रीराम के रूप में ऐसा दर्पण दिया है, जिसके सामने हम बड़ी आसानी से अपने गुण-अवगुणों का मूल्यांकन करते हुए अपनी मर्यादा, करुणा, दया, शौर्य, साहस और त्याग का आकलन कर श्रेष्ठ इंसान बनने की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। रामभक्ति के पर्याय बने गोस्वामी तुलसीदास ने सत्य और परोपकार को सबसे बड़ा धर्म तथा त्याग को जीवन का मंत्र मानते हुए अपनी रचनाओं के माध्यम से असत्य, पाखंड, ढोंग और अंधविश्वासों में डूबे समाज को जगाने का हर संभव प्रयास किया।

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