केंद्र सरकार की पहल से अजरक कला और कलाकार को मिल रही पहचान

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कला को पहचान की जरूरत होती है, कलाकार को हुनर की और सही मायने में देखा जाए तो एक कलाकार पैसों का नहीं, बल्कि तारीफ का भूखा होता है। पिछले दिनों आईसीसीआर (भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद) के क्राफ्ट मेला में ये साफ दिखा, जहां मेले में सांस्कृतिक विविधता में एकता की झलक देखने को मिली।

मेले में शामिल हर एक उत्पाद हाथों से बना कर तैयार किया गया था, जो पर्यावरण के अनुकूल भी थे। इसमें गुजरात की अजरक, महाराष्ट्र की मगन खादी वर्धा, समुंद्री सीप से बना उत्पाद, हांथी के गोबर से बना पेपर तक शामिल है।

केमिकल रंगों से बेहतरीन

प्रदर्शनी में स्टॉल लगाए डॉ. इस्माइल मोहम्मद कपड़े को प्राकृतिक रंगों में रंगने की कला अजरक को दशकों से सहेजते आ रहे हैं। जब उनसे पीबीएनएस ने बात कि तो उन्होंने बताया “अजरक का काम मैंने 1974 से ही शुरू कर दिया था। शुरूआती दौर में मुझे समझ नहीं थी इसीलिए मैं केमिकल रंगों से ही कपड़ों को रंगा करता था। केमिकल से रंगे कपड़ों से स्किन कैंसर का खतरा अधिक होता है। ये बात जानते ही मैंने प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।”

डिजाइन की कई प्रक्रियाएं

अजरक डिजाइन को बनने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। अजरक डिजाइन को हल्दी, इमली के बीज, अनार के छिलके, नील रंग इत्यादि से सूती और चंदेरी के कपड़ो में बनाया जाता है। डॉ. मोहम्मद आगे बताते हैं, उनके बनाए हुए कपड़े विदेश के लोग काफी पसंद करते हैं। लेकिन कच्छ में कभी-कभी पानी की किल्लतों के कारण व्यापार में मुश्किलें आ जाती हैं। अजरक डिजाइन पूरा करने के बाद इससे निकला पानी मिट्टी की गुणवत्ता को भी काफी नुकसान पहुंचता है। लेकिन इस समस्या का समाधान पीएम मोदी की योजना मेगा क्लस्टर के तहत डेढ़ करोड़ की लागत से बने वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट के जरिए हुआ, जिससे मिट्टी को भी हानि नहीं पहुंचती और पानी की बचत भी होती है।

पॉलिस्टर और सूती पर भी अजरक

अजरक को अब पॉलिस्टर कपड़ों के ऊपर भी बनाया जाने लगा है। पॉलिस्टर में अजरक डिजाइन सूती कपड़े के मुकाबले अधिक आकर्षित दिखता है और दाम में भी कम होता है। तो इस तरह से सूती हो या पॉलिस्टर, अजरक की डिजाइन लोगों को काफी पसंद आ रही है और केंद्र सरकार के प्रयासों के बाद लोग इन कपड़ों को काफी खरीद भी रहे हैं।

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