वसुधैव कुटुंबकम और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की अवधारणा को अपनाए भारत के लिए ये शब्द महज कहने के लिए नहीं हैं, बल्कि भारत ने इसे निभाया भी है। भारत कई अंतरराष्ट्रीय मौकों पर इसे साबित भी कर चुका है। फिर चाहे अफगानिस्तान संकट के समय सभी की सुरक्षित वापसी हो, यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने की नीति हो या फिर कोरोना काल में दूसरे देशों की मदद की बात है। भारत ने हर मोर्चे पर आगे बढ़ कर सबकी मदद की है। हाल ही में भारत ने श्रीलंका की मदद करके ये साबित कर दिया है कि भले ही वह आगे बढ़ रहा है लेकिन अपने पड़ोसियों के लिए हमेशा खड़ा है।
वैक्सीन मैत्री
दरअसल वैश्विक महामारी कोरोना ने जब सभी देशों को अकेला कर दिया, उस समय भारत ने खुद के साथ ही ऐसे कई उन देशों को संभाला, जो भारत की ओर उम्मीद लगाए बैठे थे। सिर्फ वैक्सीन और दवाओं से ही नहीं बल्कि भारत ने चिकित्सा उपकरण से लेकर खाद्यान्न तक की भी आपूर्ति की। इसी के तहत विदेश मंत्रालय की ओर से शुरू की गई वैक्सीन मैत्री के तहत 95 से अधिक देशों को वैक्सीन की सप्लाई की गई। जिसकी वजह से आज विश्व एक साथ मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है।
श्रीलंका को मदद
आर्थिक दौर से गुजर रहे श्रीलंका को भी भारत ने मदद पहुंचाने में पीछे नहीं रहा। विदेश मंत्रालय के मुताबिक वो भारत की पड़ोस प्रथम नीति के अनुरूप श्रीलंका को कोविड बाद आर्थिक सुधार में उसे सहयोग जारी रखने को तैयार हैं। इसी के तहत भारत द्वारा पड़ोसी देश को ईंधन से लेकर चावल और अन्य तरह की राहत मदद भेजी है।
यूक्रेन में फंसे भारतीयों की निकासी
ये विदेश मंत्रालय के त्वरित कार्रवाई का नजीता है कि युद्ध के बीच से भारतीयों को वापस लाया जा सका। इसके लिए भारत के विदेश मंत्रालय ने 24 घंटे काम करते हुए यूक्रेन और रूस के साथ ही नहीं बल्कि उनके पड़ोसी देशों से भी संपर्क करके भारतीयों को समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी करते रहे। यहां तक कि युद्ध ग्रस्त इलाकों से भारतीयों की सुरक्षित वापसी के लिए विदेश मंत्रालय ने मॉस्को में भारतीय मिशन के अधिकारियों का एक दल यूक्रेन से लगे रूस की सीमा क्षेत्र में भेजा था। भारत के दूसरे देशों के साथ संबंध और विदेश नीति का ही नतीजा है कि करीब 22 हजार से ज्यादा भारतीयों को वापस लाया गया।
इतना ही नहीं भारत ने पड़ोसी प्रथम की नीति के तहत पाकिस्तानी, नेपाली के अलावा कई देशों के छात्रों की सुरक्षित युक्रेन से लेकर आया।
अफगानिस्तान संकट
इससे पहले अफगानिस्तान संकट के समय में भी विदेश मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना की मदद से ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ शुरू किया था। दोहा, ताजिकिस्तान और काबुल के रास्ते अलग-अलग उड़ानों में 650 से अधिक नागरिकों को भारत लाया गया था। अफगानिस्तान से भी भारत आने वालों में कई अफगानिस्तानी नागरिकों के अलावा पड़ोसी देशों के नागरिकों की संकट ग्रस्त इलाकों से वापसी करवाई।
रायसीना डायलॉग
हाल ही में रायसीना संवाद भी भारत की मजबूत छवि और तटस्थता का उदाहरण है, जिसकी वजह से करीब 90 से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। खास बात ये है कि यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन इस कार्यक्रम की अध्यक्ष रहीं, जिन्होंने कई मौकों पर भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में उठाए जा रहे कदम का तारीफ की। उर्सुला वॉन ने भारतीय लोकतंत्र और स्वच्छ ऊर्जा पर भारत की पहल की तारीफ की। साथ ही स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र का आह्वान किया और रूस-यूक्रेन संकट पर कहा हिंसा को रोकने के लिए कूटनीतिक समाधान जरूरी बताया।
गौरतलब हो कि विदेश मंत्रालय ने भी रूस-यूक्रेन संकट पर अपनी स्थिति को कई मौके पर स्पष्ट कर चुका है। भारत वहां युद्ध की समाप्ति और बातचीत की प्रक्रिया फिर से शुरू करने और कूटनीति के जरिए मामला सुलझाने का समर्थन करता रहा है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि भारत अपने सिद्धांतों पर चलते हुए मानता है कि समूचा विश्व समुदाय एक ही बड़े वैश्विक परिवार का एक हिस्सा है और परिवार के सदस्यों को शांति और सद्भाव रखना चाहिए, मिलजुल कर काम करना चाहिए और एक साथ बढ़ने और पारस्परिक लाभ के लिए एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए।