उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने चुनावी पंडितों और तमाम आंकलन को गलत साबित कर दिया। जनता ने एक बार फिर बीजेपी की सरकार पर भरोसा जताया है और पार्टी ने बहुमत का आंकड़ा पार लिया है। इसके साथ ही पहली बार किसी सत्तासीन दल की दूसरी बार वापसी हुई है।
हालांकि इस बहुमत के पीछे एक बार फिर मोदी मैजिक माना जा रहा है। केंद्र की तमाम योजनाओं और राज्य सरकार के सहयोग पर लोगों ने भरोसा जताया है। उत्तराखंड में बीजेपी 70 में से 47 सीटों के साथ लीड कर रही है।
महिला वोटरों में पीएम मोदी के प्रति क्रेज
उत्तराखंड की 70 सीटों के लिए हुए चुनाव में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा था। ऊपरी तौर पर किसी भी दल के पक्ष में लहर जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी। अपने मजबूत संगठनात्मक ढांचे के अलावा अन्य जो बातें भाजपा को हिम्मत दे रही थी, उसमें दो बातों का जिक्र जरूरी हो जाता है…
इनमें से पहली यह थी कि तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नहीं थी। इसके अलावा, दूसरी अहम बात यह थी कि उत्तराखंड के खास कर ग्रामीण इलाकों और वहां भी महिला वोटरों में पीएम मोदी के प्रति जबरदस्त क्रेज था। पूरा चुनाव कांग्रेस भी मजबूती से लड़ी, लेकिन मोदी का जादू ऐसा चला कि पार्टी के अरमान हवा में उड़ गए। बीजेपी की जो प्रचंड लहर चली है।
मिथक कहीं बरकरार, कहीं टूट गए
विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तासीन दल का दोबारा सत्ता में न आ पाने का मिथक टूट गया है, लेकिन गंगोत्री सीट से चुनाव जीतने वाले दल का सरकार बनाने का मिथक अपनी जगह है। इसी तरह, शिक्षा मंत्री के चुनाव न जीतने का मिथक इस बार टूट गया है। गदरपुर से अरविंद पांडेय ने चुनाव जीतकर इस मिथक को दफन कर दिया है। इससे पहले, तीरथ सिंह रावत, नरेंद्र सिंह भंडारी, मंत्री प्रसाद नैथानी जैसे नेताओं की चुनावी हार को इस मिथक से जोड़कर देखा जाता रहा है। निवर्तमान मुख्यमंत्री के चुनाव हारने का मिथक भी जस का तस है। इस मिथक पुष्कर सिंह धामी से पहले हरीश रावत, भुवन चंद्र खंडूरी के मामले से जोड़कर देखा गया है।
जिस सीट से पिता हारे, बेटी जीती
कोटद्वार विधानसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार ऋतु खंडूरी भूषण की जीत को असाधारण माना जा रहा है। वजह, वह यमकेश्वर की विधायक थीं और दूसरी सूची में उन्हें अचानक से कोटद्वार का टिकट दे दिया गया, जहां पर उनके मुकाबले में कांग्रेस के दिग्गज पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी थे। नेगी 2012 में ऋतु के पिता भुवन चंद्र खंडूरी को उस चुनाव में हरा चुके हैं, जिनसे संबंधित नारा ‘खंडूरी है जरूरी’ देते हुए बीजेपी चुनाव में उतरी थी। इस बार के चुनाव में वोटरों ने मानो प्रायश्चित कर लिया।