(नई दिल्ली)05दिसंबर,2025
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से एयरपोर्ट पर जाकर किया गया स्वागत अमेरिकी मीडिया की सुर्खियां बन गया। द न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट और द वॉल स्ट्रीट जर्नल समेत कई प्रमुख समाचार पत्रों ने इसे भारत का स्ट्रॉन्ग जियोपॉलिटिकल स्टेटमेंट बताया। यानी ऐसा शक्तिशाली भू-राजनीतिक संकेत, जिससे किसी देश की रणनीतिक स्थिति और इरादे साफ जाहिर हों। अमेरिकी विश्लेषकों के अनुसार पुतिन के लिए मोदी का कूटनीतिक सरप्राइज और पुतिन का अपनी कार छोड़कर मोदी की कार में सफर करना यह प्रदर्शित करता है कि भारत रूस पर भरोसा बनाए हुए है और अमेरिका के साथ टैरिफ तनाव के बावजूद अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से पीछे हटने को तैयार नहीं है।
पश्चिमी प्रेस ने कहा कि भारत यह दिखा रहा है कि वह किसी बाहरी दबाव, धुरी या गुट से प्रभावित हुए बिना अपनी विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता रखता है। साथ ही सार्वजनिक संकेत भी देने में सक्षम है। रूसी मीडिया ने भी कहा कि पीएम मोदी का एयरपोर्ट आना राष्ट्रपति पुतिन के लिए अप्रत्याशित सम्मान रहा। यह पुतिन के साथ मोदी के विशेष संबंधों का संकेत है। रूसी मीडिया आरटी, तास और रॉसिया- 24 ने इसे असाधारण सम्मान बताते हुए कहा कि भारत ने वैश्विक दबावों के बीच स्पष्ट कर दिया है कि रूस उसके रणनीतिक मानचित्र में आज भी केंद्रीय साझेदार है। पुतिन जब भी विदेश यात्रा करते हैं, तो आमतौर पर अपनी सुरक्षा-सुविधाओं वाली कार में ही सफर करते हैं। इस बार उन्होंने यह प्रोटोकॉल तोड़ते हुए पीएम मोदी की कार में बैठकर पीएम आवास तक की यात्रा की। पश्चिमी विश्लेषकों ने इसे भरोसे का विरला उदाहरण बताया। यह कदम न केवल व्यक्तिगत समीपता का प्रतीक है बल्कि यह संकेत भी कि पुतिन भारत को विश्व भू-राजनीति में अपने भरोसेमंद स्तंभ के रूप में देखते हैं। ये कूटनीतिक संकेत भारत उन नेताओं के लिए सुरक्षित रखता है, जिनके साथ उसके संबंध रणनीतिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक तीनों आयामों में गहरे हों।
पुतिन का कार बदलकर पीएम मोदी की गाड़ी में बैठना दुनिया को बड़ा कूटनीतिक संदेश
पश्चिमी मीडिया का कहना है कि भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ, ट्रेड बैलेंस और तकनीकी निर्यात प्रतिबंधों को लेकर हाल में कड़वाहट बढ़ी है। ऐसे समय में पुतिन का आगमन और मोदी का व्यक्तिगत स्वागत भारत की बहुध्रुवीय विदेश नीति का स्पष्ट प्रदर्शन है। अमेरिका और यूरोप के रणनीतिक हलकों के अनुसार भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि नई दिल्ली दबाव में न तो निर्णय लेगी और न अपने रिश्तों की प्राथमिकताओं को बदलने देगी। द वॉशिंगटन पोस्ट और द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस यात्रा के समय को अहम बताते हुए लिखा कि भारत पश्चिमी दबाव से अप्रभावित रहकर रूस के साथ रणनीतिक निरंतरता दिखा रहा है। अमेरिकी विश्लेषकों ने कहा कि मोदी का एयरपोर्ट पहुंचना और पुतिन का कार बदलना दोनों संकेत देते हैं कि भारत किसी वैश्विक धुरी का स्थायी सदस्य नहीं बनेगा।
यूरोप बोला-दिल्ली अपने पुराने रुख पर कायम
बीबीसी, फाइनेंशियल टाइम्स और द इकनॉमिस्ट ने कहा कि भारत ऊर्जा और रक्षा साझेदारी में रूस को महत्वपूर्ण मानकर चलता रहा है। यूरोपीय विश्लेषकों ने रेखांकित किया कि सीमित विदेश यात्राएं करने वाले पुतिन का भारत आना विशेष प्राथमिकता का संकेत है। भारत की विदेश नीति का बड़ा संदेश है कि बहुध्रुवीयता पर मजबूत कदम है। भारत रूस के साथ रक्षा, ऊर्जा, स्पेस और न्यूक्लियर सहयोग को मजबूत बनाए हुए है।
भारत चाहता है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष खत्म हो
पूर्व राजनयिक केपी फैबियन ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के प्रयासों को जारी रखते हुए, मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की स्थिति को स्पष्ट रूप से व्यक्त करेंगे। फैबियन ने कहा, यह पहली यात्रा है, और स्वाभाविक रूप से, पीएम मोदी ने यह रुख अपनाया है कि यह युद्ध का युग नहीं है। वह राष्ट्रपति पुतिन को बताएंगे कि भारत इसे कैसे देखता है, क्योंकि भारत चाहता है कि यह युद्ध जल्द से जल्द समाप्त हो। फैबियन ने कहा कि भारत के रुख के बावजूद, मास्को के दीर्घकालिक लक्ष्यों में बदलाव की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि इससे राष्ट्रपति पुतिन के स्पष्ट रणनीतिक उद्देश्य में कोई बदलाव आएगा, जिसका उन्हें राष्ट्रपति ट्रंप से पुरजोर समर्थन प्राप्त है।
राहुल का आरोप…सरकार नहीं चाहती विदेशी मेहमान नेता प्रतिपक्ष से मिलें:
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि सरकार अपनी असुरक्षा के कारण विदेशी मेहमानों को नेता प्रतिपक्ष से नहीं मिलने देती। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल ने कहा कि यह परंपरा है कि विदेशी मेहमान नेता प्रतिपक्ष से मिलते हैं, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्रालय इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। राहुल ने संसद भवन परिसर में मीडिया से कहा, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के समय भी यह परंपरा निभाई जाती रही। आजकल जब विदेशी मेहमान आते हैं और जब मैं विदेश जाता हूं, तो सरकार उन्हें नेता प्रतिपक्ष से न मिलने की सलाह देती है। यह सरकार की नीति है(साभार एजेंसी)




