Kavita : देवभूमि उत्तराखंड- आर०जे० नेहा ।।Web News।।

कविता
Devbhumi

देवभूमि उत्तराखण्ड ✍️

देवभूमि उत्तराखण्ड में एक ओर विराजमान है यमनोत्री गंगोत्री,

तो दूसरी ओर बद्रीकेदार

एक ओर बसी है फूलो की घाटी,

तो दूसरी ओर सात तालों का नैनीताल।

कभी बाँसती है यहा धुगुति, तो कभी हिलांस। कभी खिलते हैं यँहा ग्वीराल, तो कभी बुराँस।

कभी जेठ के महीनों के वो चड़चड़े घाम, यो कभी ह्यूदैं की आग।

गर्मियों में छोयों का वो ठंडा पानी,

तो कभी सर्दियों में भर-भर के चाय के ग्लास। शादियों में ढोल दमाऊ और साथ में माँगल्लों की धुन,

कभी लगते हैं यहा नौरातों के मंडाण। यँहा का युवा भी रहता है हर वक्त तैयार, बनने को देश का जवान

ताकि दुश्मन को मार, बढ़ा सकें देश का मान।

यँहा की घसेरियों कि छुण-छुण करती दारुड़िया और पनदेरियों की छल्ल -छल्ल करती पानी की गागरी।

सुबह-सुबह दादा जी के हुक्के का गुड़गुड़ाट,और साथ में दादी की बड़बड़ाट। ‘और यंहा के खाने की तो बात ही क्या करनी

कभी बनता है फाणु और झंगोरा तो कभी बाड़ी और छँनचयां।

कभी मिलते हैं खाने को रोटन और अरसे, तो कभी सिंगोड़ी और बालमिठाई।

अपने उत्तराखण्ड की बात ही है कुछ खास, तभी तो लगती है यहा पर्यटकों की तादाता

“जय हिन्द जय भारत जय उत्तराखण्ड”

                   ✍️ ✍️ आर०जे० नेहा
                       दौला ,पौड़ी गढ़वाल
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